Monday, July 27, 2015

नौजवानो, अगर तुम्हारे नशो में ताजा खून है तो भगत सिंह को याद करो जिसने हमको आजाद कराने के लिए अपनी जान कुर्वान कर दी, हम पर जिल्लत है कि गुलामी के कानून बनाए जा रहे है और हमारा खून गर्म भी नहीं हो रहा है ऩ
देश के मेहनतकशो अब तो उठ जाओ, तुम और तुम्हारे बच्चे गुलामी में धकेल दिए गए हैं ऩ इस झूठी राष्ट्र वादी भाजपा सरकार ने ऩ
व्यापम घोटाले के हंगामे के बीच शिवराज ने 22 जुलाई ध्वनि मत से
पारित किया मजदूरों, कर्मचारियों 
की संपूर्ण गुलामी का दस्तावेज़
मेरा उन नौजवानो से सवाल है जो
भाजपा के लिए काम करते है क्या
तुम गुलाम बनने के लिए भाजपा
का साथ दे रहे हो ऩ
माणिक सरकार ! त्रिपुरा में मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी द्वारा मुख्य मंत्री बनाए गये, दो साल पहले हुए चुनाव में 60 विधानसभा सीटों में 50 पर मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी सफल रही.करीब तीसरी या चौथी बार लगातार ये मुख्य मंत्री हुए हैं, बहुत सी उनमें विशेषताएँ हैं, जो लोगों को मालूम हैं, लेकिन आज के युग में भारत जैसे देश में जहाँ दुनिया भर की समस्याएँ मुँह बाए खड़ी हैं, और सरकारें आम तौर से अधिक दिन टिक नही पातीं, ऐसे में त्रिपुरा में करीब 35 साल से वामपंथी सरकार शासन कर रही है, ये बात समझने की है. विकास के मामले में भी तिरपुरा भारत के कई राज्यों से काफ़ी आगे है. शांति और सांप्रदायिक सौहार्द के मामले में भी उसकी पहली पोज़िशन है. आज तक भ्रष्टाचार का एक भी उदाहरण सामने नही आया, देश में वही संविधान है, जिसके तहत सभी राज्यों की सरकारें काम कर रहीं हैं, जबकि बहुत सारी सरकारों पर एक नही सैकड़ों भ्रष्टाचार के मामले टीवी और अख़बारों के मध्यम से सुनने को मिलते हैं. लेकिन क्या वजह है की तिरपुरा जैसे राज्य में इतने समय तक शासन चलने के बाद भी भ्रष्टाचार का एक भी मामला सामने नही आया. सरकारों और सरकारी लोगों के खिलाफ जनता का असंतोष देश के बाकी हिस्सों में बहुत अधिक देखा जा रहा है, वैसा असंतोष आज तक त्रिपुरा में सुनने को नही मिला. ये सब वैचारिक आधार पर संगठित और व्यवस्थित लोगों के काम से, और ईमानदारी से संभव हो सका है. वरना एक बॉर्डर एरिया जो बंगला देश से लगा हुआ है, वहाँ कितनी शांति और सांप्रदायिक सौहार्द की भावना देखी जा रही है, वो कमाल की बात है. देश में दूसरे भी बॉर्डर एरिया हैं,लेकिन धर्म और दूसरे नाम से वहाँ कितने झगड़े और नफ़रत के वातावरण देखने को मिलते हैं. वो आप सभी को मालूम है. लेकिन एक बॉर्डर ये भी है, हिंदू मुस्लिम जैसे प्रश्न यहाँ नही उठ रहे हैं, ऐसा क्यों है? वो लोग भी तो इसी देश और इसी देश में चल रहे संविधान और क़ानून से जुड़े हुए हैं. वहाँ भी हर जाती धर्म के लोग हैं. तो ये बात साफ समझ में आ रही है की सरकार की जनता के साथ अगर डीलिंग या व्यवहार सही है, जनता के प्रति सरकार ज़िम्मेदार है, तो फिर जनता भी सुखी होगी, तिरपुरा में ऐसा ही है. सरकार और पार्टी के लोग ज़िम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं. इस लिए वो देश के दूसरे राज्यों की अपेक्षा सुखी प्रांत है. दूसरे विकसित राज्य जैसे गुजरात और महाराष्ट या दूसरे राज्यों की तरह पूजिपतियों का भारी इनवेस्टमेंट भी वहाँ नही हुआ है, आर्थिक रूप से बडे घरानो का कोई विशेष सहयोग भी नही रहा. लेकिन फिर भी त्रिपुरा विकास कर रहा है,और देश के दूसरे राज्यों जैसे गुजरात से भी आगे है,शिक्षा में देश का पहला साक्षरता में स्थान है, आज हर मैदान में दूसरे राज्यों की अपेक्षा बेहतर पोज़िशन में है, ऐसा क्यों है? हम चाहेंगे की हमारे देश के नवजवान और समझदार लोग इस बात को ज़रूर समझे, और ऐसे ही विचारधारा के लोगों को शासन और सरकार बनाने के लिए आगे ले आने में सहयोग करें

Saturday, July 25, 2015

मे  मन की  बात
                     अभी  हम निद्रादेवी के बाहुपाश से पूरी तरह मुक्त भी  न  हो पाया थे \प्राची दिशा में आदित्य देव अपनी यात्रा का शुभारम्भ करने की तैयारी कर ही रहे थे की एक कर्ण –प्रिय आवाज हमारे कानो में गुजी “कहते  है  सब वेद पुराण,बिन पेड़ो के नहीं  कल्याण /अभी आखे पूरी तरह  से खुली  भी  न थी कि एक और  स्वर उभरा “ धूल-धुआ और  बढ़ता  शोर,धरती चली  विनाश की ओर/ फिर सिसकती हुई आवाज आयी” सारी धरती  करे पुकार,पयार्वरण  में  करो  सुधार |”

                       आज” विश्व पर्यावरण दिवस “ है /पर्यावरण झरन  व् विनाश  पर चिंता  व् चिन्तन  करने  का दिवस / लाखो सरकारी  व् गैर सरकारी  कार्यक्रम  किये जायेगे / हमे पर्यावरण सुरझा की बात एक ही दिन नहीं प्रतिदिन  करनी चाहिए / पर्यावरण बिगड़ने का प्रमुख कारण है दिन प्रतिदिन बढती हुई  जन सख्या अनुमान है की सन २०५० तक विश्व  की जन सख्या ९.६ अरब हो  जाएगी / जन बढ़ोतरी का मतलब है, वनों का सिकुड़ना/ वनों  का सिकुड़ना मतलब पर्यावरण  का विनाश | हमे इस  चक्र को  रोकना होगा / वनीकरण के लिए धरती को  बचना होगा /जन –भीड़ को कम करना होगा / तभी धरती  सुरछित रह पायेगी | हम अपनी रोजाना  की दिनचर्या में छोटे –छोटे बदलाव  लाकर  पर्यावरण  सुरझा  में महती योगदान  प्रदान  कर सकते  है / हम अपनी धरती को  हरी –भरी बना सकते है | आने  वाली  पीढ़ी  को  जीवन –लायक  धरती  उपलब्ध कर सकते है “|----------------------------------दिनेश 
“योग  तन –मन  को स्वस्थ  रखने की एक  वैझानिक  विधा  है \ योग  किसी  धर्म  से  नहीं  जुड़ा है \यह एक  जीवन जीने  का  तरीका  है \ सूर्य – नमस्कार  एक आसन  है \ इस आसन  में  शरीर के विभिन्न अंगो  के लाभकारी  योग मुद्राये शामिल  है \ तो  फिर क्यों  विरोध \कैसा  विरोध \ नमाज अदा करते  समय में  भी जब विभिन्न  आसनों का प्रयोग  करते है \ तो खुदा  की इबादत  के साथ व्यायाम भी  होता  है \ हम सभी  को सभी धर्मो की भावनाओ  का आदर करना चाहिए \हमे दुराग्रह कर किसी अच्छी  बात  का  विरोध  नहीं करना  चाहिए \ न  किसी  का  अनुचित  विरोध  सहन करना  चाहिए |”--------------------------------------------दिनेश 
मेरे  मन की बात

                           आज संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा  घोषित “अन्तरराष्ट्रीय योग –दिवस “है \उत्तरी गोलार्ध  में सबसे बड़ा दिन \ग्रीष्म –काल व वर्षा-काल का संयुक्त काल \ योग कोई  नवीं विधा नहीं है \आज से पांच हजार वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई विधा  की समूचे विश्व में मान्यता प्राप्त हुई \अति  भोतिक वादी सुखो से त्रस्त मानव को अध्यात्मिक शान्ति प्रदान  करने में पुरातन विधा  योग का महत्वपूर्ण  स्थान है \ सूर्य  की किरने  सामान रूप  से  सभी जीवो को ऊष्मा  व्  प्रकाश प्रदान करती है \जीवन की उत्पत्ति  में रवि का महत्वपूर्ण योगदान है \ फिर सूर्य की वन्दना करने में कैसा विवाद,सूर्य –नमस्कार मेरे  मन की बात
                           आज संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा  घोषित “अन्तरराष्ट्रीय योग –दिवस “है \उत्तरी गोलार्ध  में सबसे बड़ा दिन \ग्रीष्म –काल व वर्षा-काल का संयुक्त काल \ योग कोई  नवीं विधा नहीं है \आज से पांच हजार वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई विधा  की समूचे विश्व में मान्यता प्राप्त हुई \अति  भोतिक वादी सुखो से त्रस्त मानव को अध्यात्मिक शान्ति प्रदान  करने में पुरातन विधा  योग का महत्वपूर्ण  स्थान है \ सूर्य  की किरने  सामान रूप  से  सभी जीवो को ऊष्मा  व्  प्रकाश प्रदान करती है \जीवन की उत्पत्ति  में रवि का महत्वपूर्ण योगदान है \ फिर सूर्य की वन्दना करने में कैसा विवाद,सूर्य –नमस्कार स्वय में योगिक क्रिया  है |”--------------------------------दिनस्वय में योगिक क्रिया  है |”--------------------------------दिन

Friday, July 24, 2015

“मन तो मेरा भी करता है झूमूँ , नाचूँ, गाऊँ मैं
आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं
लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं
मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण कहाँ से लाऊँ मैं
मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठी हूँ
आजादी के टूटे-फूटे सपने लेकर बैठी हूँ
घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं
उन लोगों को z सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं
जो भारत को बरबादी की हद तक लाने वाले हैं
वे ही स्वर्ण-जयंती का पैगाम सुनाने वाले हैं
आज़ादी लाने वालों का तिरस्कार तड़पाता है
बलिदानी-गाथा पर थूका, बार-बार तड़पाता है
क्रांतिकारियों की बलि वेदी जिससे गौरव पाती है
आज़ादी में उस शेखर को भी गाली दी जाती है
राजमहल के अन्दर ऐरे- गैरे तनकर बैठे हैं
बुद्धिमान सब गाँधी जी के बन्दर बनकर बैठे हैं
इसीलिए मैं अभिनंदन के गीत नहीं गा सकती हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकती हूँ | |
इससे बढ़कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी
आजादी के परवानों पर घात नहीं हो सकती थी
कोई बलिदानी शेखर को आतंकी कह जाता है
पत्थर पर से नाम हटाकर कुर्सी पर रह जाता है
गाली की भी कोई सीमा है कोईमर्यादा है
ये घटना तो देश-द्रोह की परिभाषा से ज्यादा है
सारे वतन-पुरोधा चुप हैं कोई कहीं नहीं बोला
लेकिन कोई ये ना समझे कोई खून नहीं खौला
मेरी आँखों में पानी है सीने में चिंगारी है
राजनीति ने कुर्बानी के दिल पर ठोकर मारी है
सुनकर बलिदानी बेटों का धीरज डोल गया होगा
मंगल पांडे फिर शोणित की भाषा बोल गया होगा
सुनकर हिंद – महासागर की लहरें तड़प गई होंगी
शायद बिस्मिल की गजलों की बहरें तड़प गई होंगी
नीलगगन में कोई पुच्छल तारा टूट गया होगा
अशफाकउल्ला की आँखों में लावा फूट गया होगा
मातृभूमि पर मिटने वाला टोला भी रोया होगा
इन्कलाब का गीत बसंती चोला भी रोया होगा
चुपके-चुपके रोया होगा संगम-तीरथ का पानी
आँसू-आँसू रोयी होगी धरती की चूनर धानी
एक समंदर रोयी होगी भगतसिंह की कुर्बानी
क्या ये ही सुनने की खातिर फाँसी झूले सेनानी ???
जहाँ मरे आजाद पार्क के पत्ते खड़क गये होंगे
कहीं स्वर्ग में शेखर जी केबाजू फड़क गये होंगे
शायद पल दो पल को उनकी निद्रा भाग गयी होगी
फिर पिस्तौल उठा लेने की इच्छा जाग गयी होगी
मैं सूरज की बेटी तम के गीत नहीं गा सकती हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकती हूँ | |