Sunday, November 10, 2013

हम है राही फुटपाथ के

गुडगाँव एक औद्योगिक नगर है।  यहाँ के रहने वाले निवासियो के पास अपने अपने वाहन है।  मोटे मोटे अनुमान के अनुसार ४५ % नागरिकों के पास , कार -जीप , मोटरसाइकिल, स्कूटर , साइकिल अदि है।  चौड़ी -चौड़ी सड़कको पर दिन रात तेज गति से वाहन चलते रहते है।  ऐसे में ५५ % जनता के पास चलने के लिए फुटपाथ  ही बचता है।
चित्र  १ 

चित्र १ 
चित्र २ 
चिर २ 
चित्रों  के माध्यम से हमने यह दिखने कि कोशिश की है कि गुडगाव में फुटपाथों की दशा कितनी दयनिय है।  चित्र १ में दिखिये  वज़ीराबाद चौराहे के पास कूड़ादान रखा है।  उसके साथ ही एक पान कि गुमटी फुट्पाथ पर आबाद है।  पैदल चलने वाले को मजबूरन सड़क पर उतरना पड़ेगा।  चित्र २ में देखिये कि एक खम्बा फुट्पाथ पर लेटा आराम फरमा रहा है , इसे शायद बिजली विभाग या गैस पाइप लाइन बिछाने वाले लोगों ने को यहाँ रखा होगा।  अँधेरे में पैदल चलने वाला इससे टकरा कर घायल होगा।  चित्र ३ में देखिये फुट्पाथ पर बजरी-मोरंग स्टोर किया गया है , पता नहीं किस विभाग कि मेहरबानी है।  चित्र ४ में देखिये कि होंग कॉंग मॉल के समीप मुख्य सड़क के फुटपाथ पर कूड़ादान भी किसी विभाग कि कृपा है।  चित्र ५ में देखिये, ड्रेनेज के लिए फूटपाथ को खोदा गया, सिस्टम को बनाया गया फिर काफी समय से खुला छोढ़ दिया गया।  रात्र  में कभी भी दुर्घटना सम्भावित है।

चित्र ३ 
चित्र ४ 
चित्र ५ 
चित्र ५ 
हम इस आलेख के माध्यम से हुड़ा प्रसाशन से निवेदन करना चाहते है कि जगह जगह फुटपाथ  पर नाजायज़ कब्ज़ा जमाये लोगो को अन्य स्थान पर विस्थापित करे।  ताकि हम जैसे फुटपाथ के राही को सड़क पर तेज भागती कारो से बचने के लिए ठीक थाक फुट्पाथ उपलब्ध  हो सके।  आये दिन लोग दुर्घटना का शिकार हो जीवन से हाथ धो बैठते है।  कुछ लोग तो फुट्पाथ को पार्किंग कि तरह इस्तेमाल करते है।  कुछ तो अपनी दूकाने सजा कर पैदल चलने वोलो का चलना दुर्भर कर देते है।  इन सबको रोकना प्रशासन कि ज़िम्मेवारी तो है।  कम से कम इन लोगो को भी सोचना चाहिये  कि वे ऐसा कोई अवरोध उतपन्न  न करें।

हम, सूश्री सुप्रभा दहिया , हुडा प्रशासक का ध्यान विशेष रूप से दिलाना चाहते है।  दैनिक जागरण दिल्ली के पृठ  नंबर ५ (दिनांक ०९-११-१३) में एक समाचार छापा है "हाई कोर्ट ने कहा , सड़को पर बने साइकिल ट्रैक" हरियाणा व पंजाब केहाईकोर्ट  जस्टिस, राजीव भल्ला ने सड़क सुरक्षा के मामले की  सुनवाई करते हुए उक्त आदेश दिया।  फुटपाथों पर नागरिक , सुविधा और सुरक्षा के साथ चल सके ऐसी व्यस्था होनी चाहिए।
















Tuesday, November 5, 2013

यह भी दुकाने है। ....... भाग -२

अमूल की छाछ का क्या दाम है गुडगाँव में ????मैंने दुकानदार से पूछा ।  ५०० ग्राम के पैकेट का दाम १० रुपया है दुकानदार ने जवाब दिया । हमनें कहा , अरे भाई पैकट पर तो ९.५० पैसा अंकित है । हाँ है तो , पर १० रुपया में हे मिलता है । हमने कहा , यह तो बात ठीक नहीं है । यह माना कि ५० पैसे का सिक्का प्राय: चलन से बाहर हो गया है परन्तु जब ग्राहक दो या चार पैकेट खरीदता है तो क्यों ना बाकी रेजगारी, जो १ या २ रुपया होता है । उसे दुकानदार वापस क्यों नहीं करता । यह विचार मेरे मन में चलता रहा । घर पर जब चर्चा की तो लड़के ने कहा कि आप भी पापा छोटी छोटी बातों को लेकर क्या पीछे पड़ जाते है । हमने कहा बात एक या दो रूपये के नहीं है बात सिद्धांत कि  है। छाछ के रैपर पर छपे टोल फ्री नंबर १८००२५८३३३३ पर वार्ता कि तो ज्ञात हुआ कि अमूल छाछ का विक्रय मूल्य मात्र ९.५० पैसे हे। हमने वजीराबाद की दूसरी दुकान से अमूल छाछ खरीदा तो उसने दो पैकेट का दाम १९ रुपया लिया ।
अब हम पुनः "आंटी जरनल स्टोर " के मालिक श्री कौशल किशोर कुकरेजा के समक्ष उपस्थित हुए । उनसे जब मैंने बातया कि कस्टमर केअर व वजीराबाद कि दुकान की बात बताई और कहा की आप गत एक माह से प्रतिदिन एक रुपया अधिक़ ले रहे है । इसपर उन्होंने झेपते हुए बताया कि कुछ दिनों के लिए कंपनी ने दाम बढ़ा दिये थे । अब तो बात पूरी तरह साफ़ हो गयी थी कि श्री कुकरेजा सबसे अधिक पैसे ले रहे थे । हमारे जैसे ना जाने कितने लोग इनके शिकार हुऐ होंगें। जागो ग्राहक जागो का विज्ञापन अखबारो में टेलीविज़न पर प्रसारित होते रहतें है। इनसे हमें सीख लेनी चाहिये ।
वैसे कुकरेजा साहब काफी सुलझे हुए, शिक्षित, लग भग साठ वर्षीय नागरिक है। इनके पिता १९४८ में भारत- पाक बटवारे के समय दिल्ली आये थे । किसी तरीके से रोजगार करके अपने परिवार का पालन पोषण किया।
कौशल किशोर जी गुडगाँव में एक मकान कि बेसमेंट में जनरल स्टोर चलते है । वह खुद प्रातः ८ बजे सहपत्नीक आकर स्टोर खोलते है । रात्रि ८ बजे तक दोनों कड़ी मेहनत करते है। दूध , ब्रेड ,बटर तथा अन्य घरेलू वस्तुए इनके स्टोर में मिलती हैं । तीन लड़के नौकर रखे है। कॉलोनी के सभ्रांत नागरिक इनके ग्राहक हैं। मोबाइल से आर्डर बुक करके "होम डिलीवरी सेवा  "  के अंतर गत सामान घर पर भिजवा देते है । जिसका वो कुछ पैसा अलग से चार्ज करते है।
जब हमने उनसे इंटरव्यू व छायाचित्र देने को कहा तो उन्होंने मन कर दिया। कहा कि वह प्रचार नहीं चाहते है। दुनिया में कुछ अच्छे और कुछ बुरे लोग होते है । वह किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते है । वैसे बात चीत के  बीच में उन्होंने बाताया कि समय बिताने के लिए ये स्टोर प्रारंभ किया था। परन्तु अब दिन भर कि कसरत से उबगये है । स्टोर बंद करना चाहतेहै । लेकिन लगभग़ ३०००० रूपये मासिक के आये भी छोड़ी नहीं जा सकती है ।
कहने का अर्थ ये है कि औद्योगिक नगरो में बच्चा हो या बूढ़ा, जयादा पढ़ा हो या अंगूंठा -छाप, पुरुष हो या महिला सबको काम है। जो करना चाहते है ।.…………………………………………




मौत से दो पल दूर

दिनाक २ नवंबर २०१३ , रोज कि तरह प्रातः ६ बजे हम घर से निकले । शीत का प्रकोप प्रारम्भ हो चुका था । लोग जगह -जगह पुराने कागजो-लकडिओं से अलाव जला कर ठण्ड से बचने का प्रयास कर रहे थे । हम खरामा -खरामा , कुहासे के साय में ,कदम ब कदम बड़ाय चले जा रहे थे । अभी प्रकाश ठीक से प्रकाशित नहीं हुआ था । आज छोटी -दीवाली थी  शायद भुवनभास्कर भी अवकाश के मूड में है। आकाश पर हलके -हलके बादल मंडरा रहे थे । रवि के दर्शन नहीं हो पा रहे थे ।
जब मैं वजीराबाद चौराहे पर पहुचा तो देखा कि दो कारो में भयंकर टक्कर हुई । दो लोग घटना स्थल पर मृत प्राय: हो गए । हम केवल घटना स्थल से दो पल कि दूरी पर ही थे । दोनों वाहन टक्कर के बाद फुटपाथ पर चढ़ गये  थे । एक कार तो फुटपाथ पार कर, लोहे की रेलिंग तोड़ कर, पार्क  के लिये छोड़े गए स्थल तक जा पहुची थी और दूसरी कार जो टैक्सी थी वह फुट्पाथ पैर थी। जो लोग दुर्घटना से प्रभावित हुए, वे बेचारे राहगीर कही जाने के लिए फुटपाथ पर खडे थे । यदि हम दो पल पहेले घटना स्थल पर आजाते तो पता नहीं कहाँ होते----------------






सम्भवता कार चालक ,शुक्रवार की देर रात्रि तक चलने वाली पार्टी से आ रहे थे क्योंकि कार चालक जिसकी टांग में चोट लगी थी उसके मुह से मदयपन की गंध आ रहे थी। किसी तरह से ऑटो द्वारा अस्प्ताल भेजा  गया । कुछ लोगों ने बताया कि इस तरह  की दुर्घटनाये शनिवार को प्रातः २ बजे से ७ बजे के मध्य होती है ।
आज भी शनिवार ही था । कारण स्पस्ट है कि शुक्रवार के पार्टी में क्या पान किया जाता होगा । अखबारो व टेलीविज़न में इतना प्रचार होता है कि पीकर वाहन ना चलायें। पुलिस जाँच भी करती है और चालान भी
करती है पर लोग है कि मानते नही। …………………………………


    

Monday, November 4, 2013

अधूरे सपने अधूरी ज़िन्दगी

मनोरम ने कभी सपने में भी नही सोचा था कि उसकी जिन्दगी में  ये वक्त भी आयेगा । अपने छोटे -छोटे बच्चो को छोड़ कर, वह रगीन सपनो  के संसार  में खो जायेगी । पुरानी यादों को कुरेदते हुए मनोरमा भूत काल  में प्रवेश कर गयी।  छाया दीदी क्या बताएं , हमारी मात मारी गयी थी । हम पाण्डेय जी चिकिचुपड़ी बातों में आये गये । बचपन मा हमार लगन हुए गवा रहे, उस वकत हमरी उमर १२-१३ वर्ष के हुई । हमार मायका गोंडा सहर में रहा । हम पांचवी दरजा तक पढ़ाई कीन रहा, हमार ससुराल देहात में रहा हुआं खेती हुवत रहा । हमका देहात मा  तनको नीक ना लागत रहा । हम सोचा करीत रहे कि शहर मा हमरा आदमी रहे । धीरे -धीरे हमरा परिवार बढ़े लगा । २२ बरस के उमर तक हमरे दो लरिका वा एक बिटियां हो गए । हमारे सास ससुर बूढ़े रहे यह खातिर खेत पात का काम हमरे मनई देखेत रहे । हम चाहित रहे के खेत पात बेच के सब लोग सहर मा रहे । हमरे सपना मा हर बखत सहर के सिनेमा ,बाजार , बिजली ,पानी, सड़क आराम का सामान देखाये देत राहे । जबकि गाव के पनाला बह्त गालियाँ, बिजली गाव में रहे नहीं तो टी०वी० भी नहीं रहे । मुह अँधेरे उठ जाओ और दिसा मैदान से होके घर के चूल्हा -चौका मा जुट जाओ। कौनो होटल वहाँ कहाँ धरा । हमारा शहर मा रहे का सपना अधूरा था । हमारा आदमी दिन भर खेतन मा हाड- तोड़ मेहनत करत रहे । थक जात रहे । शाम का आयके खाना खाये के जल्दी सो जात रहे, कहे कि जल्दी सुबह उठ के भैंसों का दुध शहर पहुचाना का रहे । हम वोसे बातें  करेका तरसा करी ।
हमरे घर के बगल मा एक बाजपयी जी रहत रहे । उनकी बिटिया सीमा गाव  के स्कूल मा पढ़ावत रहे । सीमा दीदी हमसे ६ बरस बड़ी रहे । उनका विवाह बनारस में रहे वाले पाण्डेय जी के साथ भवा  रहे । स्कूल के नौकरी के वजह से सीमा दीदी अपने ससुराल नहीं गयी । पाण्डेय जी हफ्ता -हफ्ता मा आवत रहे । हम उनके घरे आवत -जात रहे । पड़ोस का रिस्ता से पाण्डेय जी जीजा लागत रहे । आपस में हसी -मजाक चलत रहे । पाण्डेय  जी हमका शहर की बातों से लुभावत रहे । वह हमार कमजोरी जान लिहिन । एक बार उनहोने हमसे कहा कि चलो मनोरमां शहर मा तुमका सिनेमा देखाये । हम कहा कि हमरे घर वाले कैसे जाएँ देहे । जीजा कहिन हम घरे बात कर लेबे ।
हम उनके साथ सिनिमा देखे शहर गये रहन । जब  शाम के गाव लौटे खातिर हम बस अड्डा आये तो पता चला कि बसन की हड़ताल हुए गयी है । कहूँ मारपीट  भई रहे । करफू लाग गवा । अब तो हम बड़ी साँसत में सोचत रहे कि अब का करी । पाण्डेय जीजा कहिन कि अब तो यहीं रूकिये का पड़ी । वह हमका एक होटल मा लिवा ले गए । खाना-वाना खाये के बाद कोका -कोला पिये लागे । हमका  भी एक गिलास मा पिये का दिहिन। हम  कहा के हमका नीक नहीं लागत हम नही पीयब । वो हमको बच्चों के कसम दिलाये लगे । हम मज़बूरी  मा मन मारी के कोका-कोला पिये का परा । कुछ देर बाद हमरी आखें बंद होने लगी। कुछ चक्कर सा आवे लगा । इके बाद हमका ऐसा लगा कि कोई हमरे पास सट के बैठा है। धीर-धीरे कोई हाँथ सहलाता है । फिर हमका होश नहीं रहा ।
सुबह हम जब जगे तो हमार सर भरी-भरी लागत रहे और हमरे कपडा पलंग के नीचे पड़े रहे । हमरी आबरू पर डांका पडिगा रहे । हम रोवत जाएत और उनका बुरा -भला कहत जायेत रहे । जीजा हमका समझावत रहे कि वो हमार ज़िंदगी भर साथ निभावे का तैयार है । हमका आपने साथ ही शहर में रखे खातिर कसम खान लगे । उनका तबादला बनारस से लखनऊ हुए गवा रहे । अब जल्दी-जल्दी गाव नहीं आ पावत रहे । हम कहा कि सीमा दीदी का का होई । अरे सीमा तोह हमारे साथ लखनऊ जा नहीं पायेगीं, उनकी नौकरी गाव में है और वो अपनी नौकरी छोड़ का तैयार नहीं है --जीजा ने समझते हुए कहा ।
जब दूसरे दिन हम गाव लौटे तो घर मैं बड़ा हो हल्ला मचा। जीजा तो हमका बस मैं बैठा के बनारस चले गए, हमका अकेले हि गाव आना पड़ा। हमरे सास ससुर चिल्लावत रहे ------अरी कल मुही सारी रात कहाँ रही ।
फिर हमरी तो बहुत पिटाई हुई। हमरा आदमी जैसे पागल हुए गवा । बैल हाके वाले हंटर से मारत -मारत अधमरा कर दिहिस । कहत जात हरामजादी कहाँ मुह काला किहो । बाल बच्चा भी डराये के दुपक गए अब तो गाव वाले हम पर हसत रहे बोली -ठोली बोलत रहे । रोज़ कि कीच -कीच से परेशान हुए के हम घर छोड़ के पाण्डेय जी के पास लखनऊ आये गए। जीजा रेलवे में काम करत रहे ,उन्हे सरकारी घर मिला रहे। हम लोग २० बरस तक साथ -साथ रहत रहे। उनके खाना -पीना ,घर का काम काज और पत्नी धरम निभावत रहे ।
अब जीजा रिटायर हुए गए है । अब वो चाहत है कि वो घरे लौट जाये, सीमा दीदी भी अपने ससुराल चली गयी। हम तो अपने घर लौट नहीं सकित है । बाल -बच्चा भी बड़े -बड़े हुए  गये है । सब अपने बाप के पास राहत है । हमरी सूरत भी नहीं देखना चाहतें हैं । हमसे नफरत करत हैं। "हमरी ज़िन्दगी अधूरी है। सपने भी अधूरे हैं" ------कहकर मनोरमा रोने लगी ।
छाया ने कहा , ये पुरुष भवरें है , जब तक फूल मैं जीवन है ,रस है रसपान करते है फिर उड़ जाते है, दूसरे फूल के पास……………तुम भोली -भली ग्रामीण महिला ,तुमने अपनी आगे के ज़िन्दगी का कोई प्रबंध नहीं किया। तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है। पाण्डेय जी  ने , ना तो सीमा से तलाक लिया और ना ही तुमसे विवाह किया है । इतने वर्षो में तुमने भी कोई जमा -पूँजी नहीं बनाई । खाली -खाली जेब कैसे आगे का निर्वाह होगा। कभी भविष्य का सोचा है ।
यही तो बात है छाया दीदी, हम का जानत रहे कि ज़िन्दगी के इस मोड़ पर , हमका मझधार मा छोड़े का सोचें गे । अब तो हम कुछ कर नहीं सकित है । बस आप लोगन के सहारे ज़िन्दगी गुजार देब ।
पुरुष सत्तातमक व्य्वस्था में आज भी नारी के दशा बहुत अच्छी नहीं है।

सीमा हो या मनोरम दोनों ठगी गयी। एक पुरुष द्वारा-----------------------------------------

Saturday, November 2, 2013

लज्जा का दर्द

भड -भड , तड़ाक -  तड़ाक  , छनं - छनं , खड़बड़ - खड़बड़  करता हुआ तेज शोर मेरे कानो में तेज कटार  कि तरह घुस रहा था।  मैंने कहा , अरे  लज्जा रसोई घर में तूफ़ान आ गया है या भूकम्प का प्रकोप है।  बर्तनो को क्यों इतनी  ज़ोर- ज़ोर से पटक रही हो। अरे कहा अंकलजी , हम तो बर्तन नीचे रख के धो रहे है , लज्जा ने मुस्कुराते हुए कहा।  हम तो जैसे रोज़ बर्तन चौक करते है , आज भी वैसे ही कर रहे है।  मेरी पत्नी ने कहा अरे लज्जा रानी अब ज़रा  धीरे से बर्तन रखा करो क्यों कि तुम्हारे अंकल ने कानो में ४२ हज़ार कि नयी  सुनने कि मशीन लगाई है।  अब  उन्हें हर आवाज़ तेज सुनाई देती है।  पंखा चलने कि आवाज़ , यहाँ तक की तेज हवा चलने कि सरसराहट भी सुनाई देती है। 

दुबली - पतली या कह  लो, छरहरी सावली काया में उल्लास से चमकती हुई आँखें , हर समय  हस्ती खिलखिलाती खुश मिजाज़ , दोनों हाथो को तेजी से आगे पीछे फेकते , तेज चल में चलती हमारी काम वाली लज्जा जिसे हम लज्जा मेल के नाम से पुकारते है। लज्जा ने मुस्कुराते हुए कहा कि अंकलजी यदि हम तेजी से काम नहीं करेंगे तो ७-८ घरों में कैसे काम निपटेगा।  यह सुन कर हमारे में कई सवाल उमरने लगे।  हमने कहा कि  लज्जा , तुम अपनी दिनचर्या बताओ।  वह  कुछ संकुचाती , शर्माती  हुए बोली अंकलजी हम सुबह  ५ बजे उठ जाइत  है घर साफ़ सूफ करके , घरवालो के लिए चाय नाश्ता खाना  बनाईत  है।  करीब ७ बजत-  बजत घरे से निकर जाइत है।  ७ घरन मा चौक बर्तन साफ़ सफाई पौंछा करत करत दोपहर ३ बज जात है।  घर आईके थोडा  बहुत खाना खइके आराम करित  है।  यही समय हम टीवी देखित है। हमका सी०  आई०  डी०  सीरीयल  बहुत नीक लगत है।  उमा दया तो हमका बहुते बहादुर लागत  है।  यह कोई चार बजत - बजत हम फिर घर से निकर परित है।  सब घरन मा बरतन धोवत - धावत ८ बजे तलक घरे लौट आईत  है।  फिर घरे का काम धंधा तो हमें ही करे का परत है।  इ सब करत- करत खात- पियत दस बज जात है।  ईके बाद हम सी०  आई०  डी-०  सीरियल ज़रूर देखित  है।  फिर थक थुक के सो जाइत  है फिर से सुबेरे उठे खातिर।

अच्छा यह बताओ इतने घरो में काम करती हो , तुम्हे कितना  पैसा मिल जाता है।  कुछ ठंडी आह के साथ कहती है कि करीब ४ हज़ार कमा  लेइत है।  हमने कुछ सोच  के आगे पूछा  , कि तुम्हारे परिवार में  कितने लोग है।  इतनी भीषड़ महंगाई में घर का खर्च चलाना तो बहुत ही कठिन है।  अंकिल जी , हमरे घरे मा हमरी  सास है , आदमी है , और ३ लरिका है।  सास के नाम बी०  पी ०  एल ०  कार्ड है उमा चावल , गेहू कबहु कबहु चीनी मिल जात  है।  कौनी तरीके  से बाल - बच्चन  का पाल  रहे है।  बीमारी - अजारी व त्योहार  आदि माँ जहाँ -जहाँ  काम करित  है कुछ उधर पाजाइत  है।  ऐसे ही ज़िन्दगी कि गाड़ी  खैचित  है। वह  कुछ उदास हो जाती है , हमने फिर धीरे से पुछा , कि तुम्हारा पति भी तो कुछ कमाता होगा।  बड़े  ही सर्द स्वास लेते हुए बोली  यही तो दुःख है हमका वो कभी -कभी  काम करत है।  जी लगा  कर कभी काम  नहीं करत है।  आकारु मनाई है जहा काम करत है , अगर कुछ कोई कह  दिए तो काम छोड  घर बैठ जात है।  हम कुछ कह देई तो हमका  हरकाए देत  है।  मार- पीट  करे का तैयार हो जात है।

अतीत में खोते हुए आगे बताती है कि हमर बियाओ १२ वर्ष कि उम्र मा होई गवा रहे।  २० बरस होई गए है , हमरा मायका  डालीगंज में है।  जब बियाह के बाद हम इंदिरा नगर ससुराल आये ।  हमरे ससुर तांगा  चलावत रहे।  अच्छी कमाई हुई जावत रहे।  उनके मरे के बाद हमका घरन - घरन चौक बर्तन का काम करेका परा।  कहे कि हमरे आदमी का काम करे मा शुरू से ही मन नहीं लगत रहे।  कुछ दिन तक तो हम मरे सरम के कहु जात नहीं रहे , फिर धीरे धीरे बाल बच्चा होते  गए । खर्च बढत गवा हमरे घर भी काम वाले बढत गए।  काफी उदास होकर वो बोली , इतना सब करत है  पर कौनी बात पर उई गुस्साए जात है तो, हम अगर कुछ कह देई  तो मारे कि खातिर दौरत है और कहत जात है हम तुमरी  कमाई खात  है पर तुमरी  धौस हम  नहीं सह सकित है। 

"नारी  जीवन तेरी येही कहानी।  आँचल में है दूध , और आँखों में पानी " महिला सशक्तीकरण  , ८ मार्च विश्व महिला दिवस कब सार्थक होंगे।  करोड़ो  महिलाओं का शोषण कब तक चलेगा....……………………… ?

Friday, November 1, 2013

यह भी दुकाने है

रोजगार कि तलाश में आदिकाल  से मानव अपने मुख्या स्थल को छोड़कर कर दुसरे शेहरो व देशो में पलायन करता आ रहा है। जब गावो में कृषि का कार्य नहीं होता है या परिवार के बढ़ने पर जोत कम हो जाती है, या स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध नहीं होता है  तो ग्रामीण जन शहरो की  ओर रूख करते है।  पूर्व में विश्व के अनेक देशो में जैसे मरौशउस , फिजी, गुयाना आदि देशो में गिरमिटिया मज़दूर के रूप में बिहार, मध्य प्रदेश,पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग बड़ी संख्या में गए आज भी खाड़ी देशो में काफी संख्या में लोग रोज़गार कि तलाश में जाते है।
 ऐसे ही गुडगाँव में  भी काफी संख्या में मज़दूर, छोटे रोजगारी ,रोज़ी रोटी कि खोज में आये है।  आपका परिचय हम तेरह वर्ष के किशोर ,राज किशोर पुत्र  उत्तम से करते है।
 इन्होने सड़क के किनारे चार डंडे गढ़ कर ऊपर पन्नी कि छत बनाई।  ज़मीन पर चार लोहे के रोड गाड़ कर प्लाई का पटरा जमा दिया।  पांच किलो का गैस सिलिंडर रख कर चाय बनाने का काम प्रारम्भ कर दिए।  साथ ही कुछ सस्ते किस्म के बिस्कुट नमकीन पान  मसला व सस्ती बीड़ी ,सिगरेट आदि सजा ली।  लो तैयार  हो गयी दूकान।  इनके  ग्राहक है आस  पास रोजंदारी में घर बनाने का काम करने वाले मज़दूर।  जनाब आठवी पास है, नवी क्लास में फ़ेल हो गए।  पिताजी ने फटकार लगाई तो पन्ना, मध्य प्रदेश से भाग कर अपने दीदी जीजा के पास आ गए।  सुबह छै बजे दूकान खोल कर साय छै  बजे तक कार्य करते है।  विश्वास तो नहीं होता पर उनके कहने के अनुसार रोज़ कि बिक्री लगभग एक हज़ार रुपये कि हो जाती है।  इसमें लाभ लगभग दो तीन सो रुपये हो जाता है।
 खाना खुद पकाते है क्योंकि इनके जीजा व दीदी मकान बनाने कि मजदूरी करते है।  पास ही ईंटो  कि चार दीवार ऊपर टीन का छप्पर यही  इनका निवास है।  यहाँ एक तरफ तो  गगन चुम्बी आट्टालिका ,महंगे विला हैं।  दूसरी तरफ कमर झुका कर घुसने को मज़बूर इन्सान ।  इनमें भी आदमी रहते है।  यह अच्छी बात है कि महाशय का मन पढ़ाई से पूरी तरह उचटा नहीं है।  फिरघर जाकर पढ़ाना चाहते है।  हमने पुछा आगे क्या करोगे तो बताया कि हम बैठ कर  काम करने वाला कार्य चाहते है।  हमने कहा कि इतनी कम पढ़ाई में कैसे ऐसी नौकरी मिलेगी।  बहुत  लोग बेरोज़गार घूम रहे है।  उसने मेरा ज्ञानवर्धन करते हुए बताया कि बड़े बड़े स्टोर में आर्डर बुक करने का काम मिल सकता है

यह छायाचित्र एक सिलाई मशीन का है , आप सोंच  रहे होंगे इसकी क्या ज़रुरत है।  सड़क के किनारे फूटपाथ पर सिलाई मशीन। इसके मालिक है , बीस वर्ष के जावेद पुत्र ज़ाकिर।  वे सिलाई का काम करते है, यही इनकी रोज़ी रोटी का साधन है।  लगभग पांच वर्ष पूर्व ज़िला पुर्णिया , बिहार से अपने बड़े अब्बा  के साथ गुडगाँव आये थे।  इन्हे अपना छाया चित्र खिचवाने से ऐतराज़ है।  यह आस पास के बंगलो में रहने वालो के परदे सिलना, कपड़ो कि मरम्त करना, तथा मज़दूरो कि कपड़ो कि सिलाई करते है।  जो कि बड़े टेलर टेलर के पास नहीं जा सकते है।  इनकी मासिक आमदनी लगभग पांच हज़ार रुपये तक हो जाती है।  यह वज़ीराबाद गाव में एक कमरे में तीन लोगो के साथ रात्रि बिताते है।  जिसका मासिक किराया दो हज़ार रुपये प्रति माह है।  यह चार भाई है जो बिहार में थोड़ी खेती से गुज़र कर रहे है।  इनके साथ वालो से  ज्ञात हुआ कि गाव में इनके हाथो पट्टीदार कि हत्या हो गयी थी , इसी से व बात चीत नहीं करता है , फ़ोटो आदि खिचवाने से बचता है।  जितना कमाते है खर्च कर देते है।  फिर घरवालो से पाने कि उम्मीद रखते है।

बगल में आप एक स्कूटी का छायाचित्र देख रहे है ,   यह मात्र वाहन नहीं है , एक वर्ष पहले श्री महेश चौधरी पुत्र श्री हरी प्रशाद चौधरी कि चलती फिरती दुकान थी हमारे घर के बहार सड़क के किनारे पान मसला बीड़ी सिगरेट दाल मोठ  के पैकेट आदि लटका कर बेचा करते थे।  धीरे धीरे नुक्कड़ पर अपना ठिहा जमाया।  पेप्सी कोका कोला  विक्रय  हेतु बनाये ठेलो पर चार बॉस ज़मीन में गाड़ कर, ऊपर  त्रिपाल तान कर उन्होंने अपनी दूकान सजा ली। अब तो एक गैस का छोटा चूल्हा , छोटा सिलेंडर , कि सहायता से चाय बनाने व बेचने का कार्य करने लगे।  पेप्सी लिम्का पानी कि बोतले सिगरेट पान आदि भीं बेचने लगे।   इनके ग्राहक है कालोनी के संभ्रांत कार वाले नागरिक व आस पडोस के गृह निर्माण में लगे मज़दूर।  यहाँ सुबह सात बजे दूकान खोलते है रात्रि आठ बजे तक जमकर बिक्री करते है।  लगभग बारह हज़ार प्रति माह कमा  लेते है।  श्री महेश चौधरी ने वार्ता के दौरान बताया कि वो इंटर पास है।  उनकी उम्र ४८ वर्ष है , ग्राम घिरसन  , ज़िला वैशाली , बिहार के रहने वाले है।  इनके  ग्राम में भी दूकान का व्यवसाय होता है।  परन्तु उन्हों ने आपसी उधारी व्यहारी  के कारण  , आपने ग्राम में काम करना उचित नहीं समझा।
 पहले पंजाब कि एक मिल में काम किया।  मन उचटने के कारण पंजाब छोड़ गुडगाँव हरयाणा  में आठ वर्ष से गुडगाँव में हैं ।  यहाँ वह  , किराये के घर , आया  नगर में रहते है।  जिसका मासिक किराया तीन हज़ार है।  वह परिवार के साथ रहते है।  इनके २ पुत्र व १ पुत्री है।  एक पुत्र अंसल ग्रुप में काम करता है।  दूसरा कुछ मंद मानसिक स्थिति का है।  जिसे वह अपने साथ दूकान में रखते है।  लड़की आंठवी क्लास में पढ़ रही है।  शिक्षा का महत्व समझते है।  लड़की को उच्च शिक्षा दिलाने कि तम्मन्ना रखतें  है।  श्री चौधरी गुडगाँव के मतदाता है।  जब हमने इनसे पूछा  कि आप किस दल को अच्छा समझते है , उनका कहना था , सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे है।  पहले बड़े बड़े आश्वासन देते है , बड़े बड़े सपने दिखाते है, वादे करते है , जीतने  के बाद पहले सब अपना घर भरते है।  जब मैंने उनसे पुछा कि सुरसा के मुख कि तरह बढती  महंगाई। प्याज़ , आलू, टमाटर आदि वस्तुओ के बढ़तें  दामो के लिए आप  किसे ज़िम्मेवार मानते है।  तो उनका स्पष्ट मत है कि अन्य कारणो के साथ साथ जमाखोरी इसके लिए ज़िम्मेवार है, साथ ही उनपर अंकुश न लगा पाने में  प्रशासन सक्षम नहीं है।   बेरोज़गारी के सवाल पर उन्होंने ने कहा कि यदि व्यक्ति कामकरना चाहे तो किसी ,प्रकार अपनी जीविका चला सकता है। कोई काम छोटा या बडा नहीं होता है। काम तो काम है। करने कि चाहत होनी चाहिए।