Saturday, December 14, 2013

तस्वीर कुछ बोलती है




बेक़रारी  से  है ,इन्तजार  उसे  किसीका।
जो  आ  सके  समय  से ,ये  जाम है उसीका
है ,मेज  खाली -खाली ,खाली  है कुर्सियाँ  भी।
उन्हे  है बेसब्री  से  इन्तजार  बस  उसी का।
ढ़ल  रही है शाम ,उतरती है निशा  भी।
चढ़ते  हुए , येवन  की भटकी  हुई दिशा  सी।
जुल्फों  को  कस  के  बाधा ,सीने  को  कुछ  उभरा।
है ,हाथ  क़मर  में ,है  दिलकश  ये है नजारा। 

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