Thursday, July 31, 2014

आशिक़ी में यही रवायत है **********

                                    आशिक़ी  में यही रवायत है **********
                                   =======================                                


ख़ामोश जुबां  है उनकी सहमी निगाहें,
सब कुछ बयां  करती है। 
सरे आम वह उनसे  न  मिलकर,
छुप -छुप  के मिला करती है।

जमाने भर से ग़िला  उनको,
महबूब से गंम्भीर शिकायत है।
न  इस पल, न उस पल राहत उनको,
आशिकी  में यही  रवायत   है।


वरना शहीद हो जाओगेँ *************

लखनऊ के शहीद  पथ  पर  दिनांक 13 जून से 29 जुलाई तक  सात  गंम्भीर  दुर्घटनायें  हुई। यह  कुछ सोचने के लिए बाध्य  करती है।


                               वरना  शहीद  हो जाओगेँ *************


हादसों  का पथ है शहीद पथ,
जरा  चलना सभ्भल के,
वरना शहीद  हो जाओगे।
घर में राह देखेगी आपकी,
माँ  बहिने,
तुम अपनों से राह में
बिछुड़ जाओगे।
मना लो मातम,अपनों की
मौत का चाहे जितना,
राह की कमियों  से न जीत पाओगे।
रास्ते जाम तुम करो चाहे जितना
ये सरकार है !
इसको न बदल पाओगे। 

सोच कर शरम आती है यों ***********

                                  सोच  कर शरम  आती है यों ***********



 जो जिन्दगी  के सहारे  थे,के गुजरने के बाद,
 जूझ कर जिन्दगी  से मुस्कराती  थी  वो।
 कर के परिश्रम कठिन  दोनों समय,
 दोनों बच्चो को अपने  पालती  थी   वो।
 हमे रंज  है ये लखनऊ की "निर्भया
 हम कुछ भी  न कर सके  तुम्हारे लिये
   सोच  कर शरम  आती  है  यो।


Tuesday, July 29, 2014

लोग अपनो से बिछड़ जाते है -----------

                                लोग  अपनो  से  बिछड़  जाते  है ------


कर्फ्यू  है एक  विषम स्थित,
दंगो  के बाद इसे  लगाते  है।
यह  कैसी  है बात ,बिना जुर्म
सामान्य लोग घरो में  कैद किये जाते है।
दंगो  को तो अधम,खूँखार आदमखोर
भेड़िये ही उकसाते  है।

हिन्दू को मुस्लिम  कभी -कभी
सिखों  को  मुसलमान से लड़ाते  है।
शान्ति  तार -तार हो जाती है।
लोग बाग  बरबाद हो कर रह जाते है।

आशियाना बनाने में लगते है
अनगिनत वर्ष जो छड़ भर
में घरौदे  टूट  जाते  है।
चमन  का अमन नष्ट  हो जाता है,
लोग  अपनों  से बिछड  जाते है।

बाद दंगो के शुरू होती है,
सहानुभुति  की  लहर,
इसी  बहाने कुछ लोग
राजनीति  अपनी  चमकते  है। ।


जान बड़ी जालिम है ************ =====================

                                          जान  बड़ी  जालिम  है ************
                                           =========================



                  चलते -चलते  आते -जाते ,उसने  हाथ  ही तो  छोड़ा
                   कहते है साथ होता है सात जन्मों का  साथ नही छोडा
                   पल  भर में जान निकलने की तो एक  कहावत  ही है
                    जान  बड़ी ज़ालिम है ,बड़ी  मुशकिल  से निकलती है  

न सताना किसी को********** ========

                                               न  सताना  किसी  को**********
                                             ========================  



                       अपना  गम  बाट  लो ,किसी  अपने  करीबी से
                        अपने  अन्दर  की चाहतों को फिर  से सजा लो
                        ख़ुदकुशी  करना निशानी नही है जिन्दादिली की
                        सबको  बाटो  प्यार ही ,न  सताना  किसी   को। 

Monday, July 28, 2014

आहत हुआ है गंगा का उद्गम

                                     आहत  हुआ है गंगा  का उद्गम
                                    ==========================



स्वामी  रामदेव ने  अपनी  गोमुख यात्रा  के पश्चात गंगोत्री  व गोमुख  की दशा  का  जो वर्ण न  किया  है  वह निश्च्य  ही चिन्ता  का विषय है। हमने भी गत  पैंतीस  वर्षो में गंगोत्री व गोमुख की  पांच  बार  यात्रा  की  है।
जब से  गंगोत्री  तक सीधी सड़क  का  निर्माण किया गया है  तब  से यात्रियों  की संख्या  में  काफी बढ़ोतरी हुई। नव धन कुबेरों की सुख -सुविधा के लिए उच्च स्तर के  होटलों  आदि की सुविधा उपलब्ध  करने के लिए
पर्यावरण की कीमत पर कार्य  किये  गए। वनों  को  तो उजड़ा ही गया  मार्ग निर्माण में  पर्वतो  को विस्फोटकों  से तोडा  गया। उनका हृदय  दरक  गया। बढ़ते  जन कुल से उत्तपन्न  गंदगी  ने गंगोत्री से  ही  माँ  गंगा  का आँचल  मैला  करना  प्रारम्भ  कर दिया। लोग पिकनिक के मूड में यात्रा करने लगे।

कभी भोजवासा में भोज के पेड़  बहुतायत  में हुआ  करते थे। अब  उनके दर्शन  कठिन है। एक उजाड़  सा माहौल दिखाई  देता है। ग्लोबल  वार्मिग  के चलते  गोमुख ग्लेशियर  तेजी  से प्रति वर्ष  पीछे हट  रहा है।
यह सत्य  है  इस पर गंभ्भीरता  से विचार किया जाना चाहिये।

स्वामी रामदेव  ने लिखा  है कि "मेरी गोमुख की आध्यात्मिक  यात्रा  पर आपत्तिः  की गई। वास्तव में आपत्तिः यह थी कि इस वर्षाकाल के समय  जब  प्राय:मार्ग  अवरुद्ध हो जाते है,बच्चो ,महिलाओ  आदि लोगो एक  बड़ा  दल  ले जाने के लिये समय अनकूल  नही था। दल कई  स्थलों  पर रुकावटों  से दो -चार  हुआ। वैसे यह सत्य है कि चिन्तन -मनन ,तप साधना और आध्यात्मिक  यात्रा किसी की  मोहताज नही है। पर्यावरण ,हिमालय एंव नदियों को  बचाने के लिए आध्यात्मिक जगत व जन सामान्य  का सहयोग लिया जाना चाहिए। 

मुँह में ठ उ सो रोटी प्रकरण निन्दनीय

                 मुँह  में ठ उ सो  रोटी  प्रकरण  निन्दनीय
                  =================================              


महा राष्ट्र  सदन  दिल्ली  में  शिवसेना  सांसद माननीय  राजन विचारे  महोदय  ने  जो  कार्य  किया  वह  पद  की गरिमा  के अनकूल  नही  था। यदि  सदन  में कु प्रबन्धन  है , कमिया  व  गड़बड़ियाँ  है। उनको  दूर  किये  जाने  की एक   प्रक्रिया  है। उच्च  अधिकारियों  से  शिक़ायत  की जा सकती  है। सांसदो  के  विशेषाधिकार  है।            

इस तरह  किसी  कार्मिक  के मुँह  में रोटी  का टुकड़ा  डालने  का प्रयास करना ,हंगामा  खड़ा  करना  जन -सेवक  को शोभा  नही देता है। इस  प्रकार  के  कार्य  सांसद  की  इज्जत  को  कम  करते  है। आरोपी  चाहे हिन्दू या मुसलमान ,उत्तर भारतीय या  महा रास्र्ट् यन  हो  उसके ख़िलाफ़  इस तरह  के कृत्य  किसी भी प्रकार से उचित नही  है। शिवसेना  प्रमुख  का यह लिखना कि महा राष्ट्र  के मुख्यमंत्री  के मुँह  में इस तरह  की  रोटी  डालनी  चाहिए। यह भी  उनकी  गरिमा  के अनकूल  नही  है।

समाचार पत्रो  से  प्राप्त जानकारी  के अनुसार श्री विचारे  जी  ऐसे पराक्रम  के  हँगामे  खड़े  करने  में अगली  कतारों  में रहते  है। इनकी छवि  आदतन  हगांमा  खड़े करने की है इस प्रकरण  को सांप्रदायिक  रंग  देने का कार्य तो  शिवसेना के लोग ही कर रहे  है। उनका यह  कहना कि उन्हें यह जानकारी  नही थी कि आई ० आर ० सी ० टी ० सी ० के स्थानीय  प्रबधक अरशद जुनेर  मुसलमान है।  यदि वह  हिन्दू  होता सावन में सोमवार  का व्रत कर रहा होता  तो भी  यह सही  नही होता।  मेरे विचार से विचारे के इस कार्य की निंदा  शिवसेना  के लोगो वा  प्रमुख  करनी चाहिए। 

हर ख्वाहिश के बाद *********

                                   हर ख्वाहिश  के बाद *********

हर इक ख्वाहिश  के बाद ,जन्म  लेती  है  दूसरी इच्छा
तुम  गर चक्क र  में  पड़े  इनके  तो मागते रहो भिछा
करो  सन्तोष   जो है  पास तेरे मिलती है हमे यही शिछा
सांस   रुकने  न  दो अपनी कभी  करो जतन से रछा।

Sunday, July 27, 2014

सच्चे आशिक ****** भूला नही करते

                      सच्चे   आशिक   ****** भूला  नही  करते

                ===============================
  मुश्किलें  हो  चाहे जितनी
 सच्चे आशिक़  यू  थका  नही  करते।
 हरि  के  नाम  की तरह
 माशूक़  का नाम  दिन -रात  जपा करते।
 देखते  ही देखते गुन -गुनाते
 नाम , लबों  पे नाम यही सज  जाता है।
 सच्चे  आशिक किसी भी
 हाल  में माशूक को भूला  नही करते। 

Friday, July 25, 2014

एक पत्थर से बिगड़ा अमन -चैन

                             एक  पत्थर  से  बिगड़ा  अमन -चैन
                          ==========================


लोक तंत्र  में  अपनी  आवाज़  बुलन्द  करने  का  अधिकार  हर  नागरिक  व  समुदाय  को  है। गलत नीतियों  व  कार्यो  का  विरोध  करना  हमारा  दायित्व  भी है दिनांक २५ जुलाई २०१४  को लखनऊ में  जो कुछ  भी  हुआ  वह लोक त त्र  के लिए  अच्छा  नही  हुआ।

शिया धर्म गुरु मौलाना  कल्बे  जवाद  का  आरोप  है  कि   शिया वक्फ  बोर्ड  के चुनाव  की वोटर लिस्ट  में  काफी धाँधली  की गई। उनके  समर्थको  के  नाम  काट  दिये  गए। चुनाव प्रमुख  की नियुक्ति  में भी एक  राय नही  थी। वक्फ  की जमीन पर कब्जों  के मामलों  में  जिनके नाम रिपोर्ट है  उनकी गिरफ्तारी  की जानी  चाहिए।  


मांगे  चाहे  जितनी  भी जायज़  हो जिस  तरीके  का प्रयोग किया गया  है  वह एक स्वस्थ  लोक शाही  के लिये  कलंक है। इस तरह  के प्रदर्शनों  में  अासमाजिक त त्व  सक्रीय  हो  जाते  है। मूल प्रश्न तो पीछे रह   है  हम  अन्य  मामलों  में उलझ  जाते  है। उपद्रवी  लोगो  ने  मोटर -साईकिल  व पी ० ए ० सी ० की बस  जला दी गई। वाहनों  को पलटा  गया।  जरा  सोचिये  हमने  किसका-तफ़री नुकसान  किया ? उत्तर  साफ़  है कि  हमने  अपना  ही धन  नाश  किया  क्योकि  सरकारी सम्पति ,जनता दवरा  दिए  कर  से  ही  खरीदी  जाती  है। पुलिस  पिटाई ,हथियार छीन  लेना  यह  सब  अपराध के  दायरे  में  आता  है इस  तरह  की घटनाये  प्रायi हर प्रदर्शन  में  देखने  को मिलती  है। इसके लिए  सरकार  और  प्रशासन  भी  दोषी  है  जबतक  िस्थत  उग्र  नही  हो  जाती ,शासन के  कानो में  आवाज पहुँचती  ही  नही  है।

एक ओर  जापान  का उदाहरण  है ,लोग बाह  में काली  पट्टी  बांध  कर  विरोध  प्रदर्शन  करते  है तो  शासन ध्यान देकर समस्या का  निराकरण करने का  सार्थक प्रयास  करते  है।  हमारे यहाँ  भी अहिंसक , शान्त व्यवस्था  होनी  चाहिये  ताकि लोग  दहशत , जाम  अफ़रा -तफ़री  व  चोटिल  होने  से  बच  सके 

आम -जन न रह जाये बेचारा ===========================

                                        आम -जन  न  रह  जाये  बेचारा
                                  ===========================

   अमित  शाह  को राजनाथ  ने  सौपी  बी ० जे ०पी ० की  कमान ,
  क्यों  न  आये  गुजरात   के  चेहरे पर  मीठी  मधुर  मुस्कान।
  सत्ता  शासन  पर  है  मोदी  सरकार  के प्रमुख  निराले  प्रधान
   पार्टी  प्रमुख भी  है  मोदी  पसन्द  गबरू  गुजरती  जवान।,

   अब  तो  चारो  तरफ  बहेंगी  विकास    की बहुमुखी  धारा ,
   न  कोई  रोक , न  कोई  टोक  नई  ताकत ने  पार्टी  को उभरा।
   चारो  तरफ  है  कमल  ही कमल  सिसक  रहा  है  हाथ  बेचारा ,
   सर्व -शक्तिमान ,महा मानव  मोदी के  आगे
                                                   आम -जन  न  रह जाये बेचारा। ।
                                                                 

Thursday, July 24, 2014

हम सब एक है

                                              हम  सब  एक   है
                                      ==================



"देश  के मुसलमानो  को  बांटने  का  प्रयास  न  करे। हमारे  देश  के  हिन्दू  व्  मुस्लिम  दोनों  धर्मो  के  पूर्वज एक  ही  थे। भारत  सभी धर्मो  के  लोगो  का है। "------स्वामी  राम देव
उक्त  बयान  राम देव  ने  एक कार्य क्रम  के  दौरान अपने  सम्बोधन  में कहे ,निश्चय  ही  स्वागत  योग्य  है। गंगा -जमुनी  तहज़ीब  का  भारत ,यहाँ  जन्म  लेने  का व  निवास  करने  वालो  का  है। अतीत  के झरोखे  में
यदि  हम झांक  कर  देखें  तो  हम  पायेगे  कि  बलात ,स्वेछा ,लालच  तमाम  लोगो  ने धर्म  परिवर्तन  किया। कुछ  लोगो  ने  सामाजिक  कुरीतियों  के  चलते  ईसाई ,बौद्ध  धर्म  आंगीकार  किया था।  सभी  के  पूर्वज  एक  ही  है 

Tuesday, July 22, 2014

सवेदनहीनता

                                                  सवेदनहीनता
                                             ===============


सवेदनहीनता  हमारे  समाज में  प्रमुख  रूप  से घर  करती  जा  रही  है। दिल्ली  में भी  निर्भया -काण्ड  में  दामनी  और  उसका  साथी  काफी  देर  से घायल पड़े  थे। लोग -बाग  देखते  और  आगे  बढ़  जाते। इसके  पीछे प्रमुख  कारण  है  कि पुलिसः  की  पूछ -ताछ और  उनकी उलझाऊ  प्रक्रिया  में लोग नही  फसना  चाहते है। इससे  यह  होता  है  कि  चाह  कर  भी प्राया  लोग मदद  नही  कर  पाते। दामनी  भी  काफी समय  बिना  कपड़ो  के कराहती  रही  यदि यथा शीर्घ  सहायता  मिल  जाती  तो  सम्भव  है कि  वह  आज जिन्दा  होती। मोहनलालगंज  में  भी युवती नग्न  अवस्था  में थी  तमाम  तमाशबीनों  ने व्  पुलिसः  ने फोटो  खींचे परन्तु  अविलम्ब  कफ़न  नही  दिया  जा  सका।   इसके  लिए  हमारी  मानसिकता  दोषी  है। खबरे  यहाँ तक  है कि पुलिसः ढँके  शव  से  कपड़ा  हटा कर  फोटो -सेसन  की भागीदार  है।  जोकि  बहुत निन्दनीय  कार्य  है सत्यता  है कि  शव नग्न था। पीड़ित  को क्या फर्क  पड़ता है। हमाम  में सभी नग्न है लेकिन खुलेआम  कोई प्रदर्शन  नही  करता। कहा  भी  गया है "सत्यं  वद -प्रिय  वद। 

Friday, July 18, 2014

पूरे मन से ============

                                          पूरे    मन     से
                                       ============


          कारे -कारे -भूरे -भूरे  बदरा  आये ,झूम -झूम  के  बरसे।
           अभी  बहुत   खेत  है  सूखे , पावन ,शीतल  जल  को  तरसे।
           नीलभ  गगन यूँ  दिखता  है ,छुछ i हो जैसे   वह  जल  से।
            मेंघो  को  आमंत्रण   है ,बरसे  धरा  पर  पूरे  मन  से। 

केवल है हैवानियत

                                           केवल    है      हैवानियत
                                ==========================    


            हैवानियत -हैवानियत  बस  केवल  हैवानियत
            दिल्ली   में    हैवानियत ,  लखनऊ   में  हैवानियत।
             देश  के विभिन्न  हिस्सों    में फैली   है  हैवानियत,
             अरे  ! इन्सानों   जरा   आँखें   तो  खोलों , सिसक
             रही ,घिसट  रही है ,मौत  की ओर तेरीइन्सानियत। 

              न  कोई  कानून  काम आया ,न  काम आया  कोई  सिद्धान्त ,
              न  रसूख़  बचा  किसीका ,न  बचा  किसीका  कोई  रूतबा
              हर  जगह   खुल  के  खेल  रही  है ,केवल  है  हैवानियत। ।



अब तो जागो जन -सेवको

                               अब  तो  जागो  जन -सेवको
                            ======================


दिल्ली  के  निर्भया  काण्ड  के फैसले  की स्याही  अभी  सूख  भी  नही  पायी  थी। दिनांक १७  जुलाई २०१४  को-लखनऊ  के मोहनलालगंज  तहसील  के  बलसिंघ  खेड़ा  गाँव  में प्राइमरी  स्कूल  के प्रांगण  एक  नव -युवती  के  साथ  हैवानियत  का  नंगा - नाच  कुछ  नर -पिचाशो  दवरा  किया  गया।  अस्मात  तो  लूटी  ही लूटी ,बेदर्दी से  उसका क़त्ल  कर दिया  गया। यह  अपराधियों  की  बढ़ी   हिम्मत  की  पराकाष्टा  है।
 
हमारे  कुछ  माँननीय  मंत्री  यह  कहते है  कि  हर  लड़की पर  चौबीस  घण्टे  पुलिसः नही  लगायी  जा  सकती  है। यह  बात  ठीक  है  हर  नागरिक को  हर  समय पुलिसः सुरछा  नही  उपलब्ध  करायी  जा  सकती  है। तथा -कथित  जन -सेवकों  को जेड श्रेडी  की  सुरछा  उपलब्ध  रहती  है क्यों ? यदि  यह  भी  मान  लिया  जाये  तो  क्या  प्रशासन  की  इतनी  हनक नही  पैदा  की  जा  सकती  है  कि  अपराधी  अपराध  करने  के  पहले  सौ -बार  सोचें।

मानव -अधिकार   की  बात करने  वालो  से  हम  यह  जानना  चाहते  है  कि  पीड़ित  युवती  या  पीड़ित  जन  आदि  के  कोई  मानव -अधिकार  होते  है  या नही। भारतीय  सविंधान  में  व्यवस्था  है  कि "चाहे  सौ  दोषी  छूट  जाये  परन्तु   एक  भी  निर्दोष  को  सज़ा  नही  होनी  चाहिये। मेरे  विचार  से  अब  इसे  बदलने  का  समय  आ  गया  है। प्रशासन  का  रुतबा  व  डर  पैदा  करने  के लिये अपराधी  को सरे -आम  सज़ा  अविलम्ब  दिये  जाने  की  व्यवस्था  होनी  चाहिए।  इस  तरह  की  हैवानियत  करने  वाले  को खुले -आम  प्रचार  कर  गोली  मार  देनी  चाहिए  तभी  इन्सानियत  को शर्म -सार  करने वालो  को सबक  मिले गा। 

Wednesday, July 16, 2014

अज़ब हाल है देश के नौजवानो का

                                        अज़ब   हाल   है  देश   के  नौजवानो   का
                                    ===============================




               बिना  अंग्रेजी  अखबार  के
                पेट   की   सफ़ाई   नही   होती ,
                 अज़ब  हाल  है देश  के  क़ुछ  नौजवानो  का।
                 जन्म  के  समय  रोते  है  अपनी  भाषा  में
                 बाद  की  पढ़ाई  में  जोर  है  अंग्रेजी    का।
                 है  बच्चो  की समझ  यह  बनाई  जाती है।
                  कैरियर  बनाना  है तो  पाठ  पढ़ो  अग्रेज़ी  का। ।
               


पहली बार : अशोक आजमी की नयी कविता 'लाल बहादुर वर्मा'



पहली बार : अशोक आजमी की नयी कविता 'लाल बहादुर वर्मा'   के विषय  में  विचार



         यह  सत्य  है  कि  कोई  अजर  अमर  नहीं  होता         जब  तलक  सांस  अटकी  है  तभी तक आश  भटकी  है
          उनके  किये  काम ज़मा
ने  में  याद  किये  जाएंगे
          उनकी  काया  तो नश्वर है ,बाद में फूक  दिये  जायेंगे। .



प्यासी धरती रूठे मेघा

                                             प्यासी   धरती     रूठे     मेघा
                                              =========================
            

आसाढ़  तो  चुपके -चुपके  सूखा -सूखा  बिता
है   सावन  की   घटा   छाती।
इक -इक  हल्की  सी फ़ुहार  आती है ,
है  तपते  बदन  को  सहला  जाती।
बदन  अपना  तन्दूर  सा भभक  उठता
है  बूद  छिन्न  से  उड़   जाती
जब  तलक झूम   के  न बरसे  बरखा ,
धरती   प्यासी  की  प्यासी  रह  जाती //       

Friday, July 11, 2014

अतिक्रमण एक सामाजिक अभिशाप है

                                            अतिक्रमण   एक   सामाजिक  अभिशाप   है
                                           ===============================


अपनी  सीमा  से  बाहर  जाना  सदैव   हानिकारक  हें। यह  अतिक्रमण  जीवन  के किसी  भी हिस्से  में  जायज  नही  ठहराया  जा  सकता  है। मानव  जब भी  प्रकति  कई सीमा  क़ा  अतिक्रमण  करता  है।  उसे  प्रकति  के  कोप  क   भाजन  बननi  पड़ता  है।  केदार घाटी  की  भंयकर  विनाश  लीला  हमारे  सामने  है।
अब  हम  क़ुछ  अन्य  स्तर  पर ध्यान  देते  है।  ख़ाली  प्लाटो  पर हम  क़भी -क़भी  पड़ोसी  की  जमीन  कि  थोडी  बहुत  जमींन  क़ब्ज़ा  करने  का  प्रयास  करते  है। ख़ाली  प्लाटो  पर  अवैध  कब्ज़े  हों  जाते  है। गन्दी  झुगी -झोंपड़ी या  कुकुरमुत्ते  की तरह  उग  आती  हें। जो  आस -पास  के  वातावरण  को  दूषित  करते  है क्योंकि  मौलिक  जन -सुविधाये  उन्हें  उपलब्ध  नहीं  होती  है।  यह  अवैध  कब्ज़े  स्थान  के स्थानीय  नेता  या  समाजविरोधी  तत्व   काली -कमाई  करने  के लिए कराते है। समय -समय  पर उन्हें  उजाड़ने  के  अभियान  चलाये  जाते  है। जनता  की मेहनत  की  कमाई  से  प्राप्त  राजस्व  क़ो व्यय  किया  जाता है। ऊपरी  आमदनी  का  जरिया  भी  बनता  हें।

कुछ  समय  बाद पूर्व  स्थित्त  फिर  हों  जाती  है। इसका  स्थायी हल  खोजा  जाणा  चाहिये। इसके  लिए  हमे  अपने  अन्दर झाँकना  होगा।  हम  जाम  में प्राय : फसते  है। कीमती  डीज़ल ,पैट्रोल ,सी ० न ० जी ० व्यर्थ  खर्च  होती  है। प्रदूषण  भी  फैलता  है। क्या  हमने  कभी  सोचा कि अन्य  कारणों  के  साथ  जनता  भी उत्तरदायी है।

सड़को  के  हाल  देखिये।  सड़के  कही  की भी  हो  इनके  किनारें  के व्यवसायी  सड़क  पर क़ब्जा  करना  अपना  जन्म -सिद्ध  अधिकार  समझते  है। पहले  सड़कें  कम  चौड़ी  थीं। जन-सख्या  का  दबाब  बढ़ा  तो सड़कें  चौड़ी  की गयी। हरे -भरे  पेड़ों  को  काटा  गये।  उनकी   बलि  चढ़ा  दी गयी  जो हमे ऑक्सीजन  व धऱती को  जल  प्रदान  करते  थे। मगर  हालात  वहीं  के वही  रहें। सड़कें  चौड़ी  की गयी ,कब्ज़े बढ़ते गये। अतिक्रमण  हटाने वाला  दस्ता  रस्म  अदायगी  को  आता है ,कुछ -कुछ  तोड़ -फोड़  होती है।  कुछ  दिनों  में  वहीं  स्थति  फ़िर  हो जाती  है। कुछ  लोग  अपनी जेबें  गर्म  करते हें।  हम पुन :  जाम  में  फ़से  पसीना  बहते   रह  जाते है। ऐसा  इस  लिए  होता  है क्योकि  इसमें  जनता स्वय  भी  हिस्सेदार है।

हमे  इस   आदत  को बदलना  होगा।  हमे  स्वय  निर्णय  लेना  होगा  कि  हम नियम  विरूद्ध  न  तो  कोई  काम  करेंगे  न ही  होने  देगे।  पहले  हमे  ही  सुधरना  होगाः। 

Tuesday, July 8, 2014

अनुभूतियाँ : बुलेट ट्रेन के हसीन सपनें औऱ हक़ीक़त

अनुभूतियाँ : बुलेट ट्रेन के हसीन सपनें औऱ हक़ीक़त:                        बुलेट    ट्रेन    के     हसीन   सपनें  औऱ   हक़ीक़त    ==================================================       मो...

" बुलेट ट्रेन किसके लिये " ========================

                             " बुलेट  ट्रेन   किसके  लिये "
                      ========================


यह  सत्य  है  कि  नई  तकनीकी  का  प्रयोग  हमे  विकासः शील  राष्ट्र  के  ख़ाने  से  निकाल कर  विकसित  देशों  के  बराबर  खड़ा  होने  में  सहायक  हो  सकता  है। क्या  बुलेट  ट्रेन  इस  लिये  कि  वह  जापान  व चींन
आदि  देशो  के यहाँ  है  ? उच्च -कलाश  मे  सुविधाए , विमान  जैसी  की  जाये     अच्छी  बात  है।

अब  यहाँ  यह सोचना  आवश्यक  हो  जाता  है  कि  उक्त  सुविधा  का  लाभ  कौन  वर्ग  उठायेगा।  देश  में वह  कितने प्रित शत हें। निश्चय  ही उक्त सुविधा ओ  का उपभोग  धनीवर्ग  तथा उच्च  माध्य्म  वर्ग  ही  उठा  पाएँगे। हमारे  यहाँ रेलवे -स्टेशनों  में मूल भूति  सुविधाओं  का  अभाव है। हमने  लम्बी -लम्बी ट्रेने  तो  डब्बे
जोड़  कर  बना ली  परन्तु  उसके  सामणे  प्लेटफार्म  का  शेड  सकुचित्  हो गये। यात्रियों  को वर्षा -काल  में भीगते  हुये ,ग्रीष्म -काल  में अपने  पसीने  से  तरबतर ,रवि  की प्रखर  किरणों  रूपी बाड़ों  को  सहना  पडता  हें। शीत -काल  में  तीख़ी ठ ड़ी  हवाओं  से  यात्री गण  आहत  होते  हें। डब्बो में  प्रकाश  व  पानी  त था  सफाईं  की  लचर  व्यवस्था  से  जन -मानस प्राया व्यथ्तित  होतां  हें।  रेलों  में आये  दिन लूट -पाट,आराजकता  का
नंगा -नाच  से  यात्रिओ  को  दो -चार  होना  पड़ता  है। अकेली  महिला  का  सफ़र  कितना  सूरिच्छित  रह्ता हें  इसकी  बानगी  हमै  प्रायi  समाचार -पत्रों  से  प्राप्त  होती  रहती  है।

इन  मौलिक  सुविधाओं   को  जन -सामान्य  तक पहुँचाने  में  यदि  सरकार  सफल  रहतीं  है  । सुशासन  वा
अच्छे  दिनों  की  परिकल्पना  तभी  साकार  होगी। 

Monday, July 7, 2014

बुलेट ट्रेन के हसीन सपनें औऱ हक़ीक़त

                       बुलेट    ट्रेन    के     हसीन   सपनें  औऱ   हक़ीक़त
 
 ==================================================
     
मोदी  जी  जरा  देखिये ,देश  की  रेलों  का ये   हाल
उच्च कोटि  के यात्री  भी हो  रहे यात्रा  में  बेहाल।

जरनल  वर्ग  के यात्रियों  का  कौन  होगा पुरसाहाल ,
वह  तो  वैसे  ही  है तथा कथित "कैटिल -क्लास "।

अच्छे  दिनों  का नारा तो  दिया हें आपने  फर्स्ट -क्लास ,
कर्ज  भी  आपने  बहुत  बटोरा  है  ब्याज  है  हाई -क्लास।

अभी  तक  तो कुछ भी  नहीँ   दिखा है  अच्छा -अच्छा ,
आप  की  ओर  आशा  से  देख  रहा  है  देश  का  बच्चा -बच्चा।



वित्त मंत्री के ससंद मे जवाबों के ज़वाब

वित्त मंत्री  के  ससंद  मे  जवाबों   के  ज़वाब
=============================
 

     माना  कि  सभी  कमियां  हें ,यू ० पी o ए ०  सरकार  की ,
     जनता  ने सौपा है  तुम्हें  ताज़ ,तुम्हें  क्या  यही  दरकार  थी।
     
     चक्का  जाम  नही  हो  पायेंगे  कभी  भी  रेल  का ,
      यदि  तुम दिखा  सको  भृष्टो   को  रस्ता  जेल का।

      जमाखोरों  के खिलाफ़  छेड़ोगे  अब  ज़िहाद  तुम  अभी।
       उन्होंने  तो  रास्ते  ढूढ  रखेँ है अपने बचने  के  क़भी। .

      किसने  कहा  करो  अमल , पिछ्ली   सरकार  का।
       अच्छे  दिनों  के  लिये  करों  क रम  अ पणी  किरदार   क़ा।


   

Friday, July 4, 2014

क़ुछ हम भी तो करें


क़ुछ   हम   भी   तो  करें
==================


हम  हर  बात के  लिये  सरकार  के   आसरे  हीं क्यों  रहें। कुछ  हमे  भी करना  चाहिये। सुधार पहले स्वय  का फ़िर प्रांरभ्भ्  अपने  घऱ से ,मोहल्ले  में सुधार  का प्रयास,इसके  बाद  किया जाये  तो बेहतर  है। मुहल्ले  सुधरेंगे  तो नगर  का काया -कल्प  होते  देर  नही  लगेगी। नगर -नगर ,गाँव -गाँव ,कस्बे -कस्बे  जब सुधार  की बयार बहेंगी  तौ  निरमल  स्वच्छ  राष्ट्र  का  निर्माण  कोई  नही  रोक  सकेगा।

इस  तरह  का प्रयास  कु ० उन्नति  टण्डन  सुपुत्री  मोहित टण्डन  जो   क्लास  छै  कि  छात्रा  हें। वह इन्दिरा नगर  लखनऊ  निवासी  बालिका  ने अपने  घऱ  को  सॉफ  रखने  पर्यावरण  सुधार  क़ा  प्रयास  पहले  स्वय  किया। फिर  घर  के  सभी  सदस्यों  को  इस  बात  के  लिये  प्रेरित  किया  कि  सभी  लोग  अपना -अपना  सामान यथोचित  स्थान पर  ही रखें। सभी  लोग सफ़ाई  में अपना  सहयोग  प्रदान  करे। सभी  लोग  घर  में बिजली  का  पानी  का  सदुपयोग  करें। यदि  हम  ऊर्जा  बचाते  पानी बचाते  है ,तो  हम  उत्पादन  में  सहयोगी  होंगे।

गृह  स्वछ्ता  अभियान  का  सफ़ल  संचालन  के  लिये  वह  समय -समय  पर  मीटिंग  कर , विश्लेषण  करती  है ,मानीटरिंग  करती  है। वह कार्यकर्ताओं  को  गोल्डन  व ब्लू  स्टार  दे कर  उनका उत्साह -वर्धन  करती  चलती  है। ठीक  कार्य  न  करने  क़े लिये  क़ाला  स्टॉर  है। पैम्पलेट  बनाकर घर -घर  व्रक्षारोपन  के लिये  सन्देश  प्रचारित  करती है। 2  जुलाई 2014  को  अपनी  माताश्री  वा  मौसी  के जन्म -दिन  पर  रानी झाँसी  वाहनी  पार्क  इन्दरा -नगर  लखनऊ  के  खाली  स्थान  पर वृक्षारोपण  करके  मानाया।