Friday, July 11, 2014

अतिक्रमण एक सामाजिक अभिशाप है

                                            अतिक्रमण   एक   सामाजिक  अभिशाप   है
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अपनी  सीमा  से  बाहर  जाना  सदैव   हानिकारक  हें। यह  अतिक्रमण  जीवन  के किसी  भी हिस्से  में  जायज  नही  ठहराया  जा  सकता  है। मानव  जब भी  प्रकति  कई सीमा  क़ा  अतिक्रमण  करता  है।  उसे  प्रकति  के  कोप  क   भाजन  बननi  पड़ता  है।  केदार घाटी  की  भंयकर  विनाश  लीला  हमारे  सामने  है।
अब  हम  क़ुछ  अन्य  स्तर  पर ध्यान  देते  है।  ख़ाली  प्लाटो  पर हम  क़भी -क़भी  पड़ोसी  की  जमीन  कि  थोडी  बहुत  जमींन  क़ब्ज़ा  करने  का  प्रयास  करते  है। ख़ाली  प्लाटो  पर  अवैध  कब्ज़े  हों  जाते  है। गन्दी  झुगी -झोंपड़ी या  कुकुरमुत्ते  की तरह  उग  आती  हें। जो  आस -पास  के  वातावरण  को  दूषित  करते  है क्योंकि  मौलिक  जन -सुविधाये  उन्हें  उपलब्ध  नहीं  होती  है।  यह  अवैध  कब्ज़े  स्थान  के स्थानीय  नेता  या  समाजविरोधी  तत्व   काली -कमाई  करने  के लिए कराते है। समय -समय  पर उन्हें  उजाड़ने  के  अभियान  चलाये  जाते  है। जनता  की मेहनत  की  कमाई  से  प्राप्त  राजस्व  क़ो व्यय  किया  जाता है। ऊपरी  आमदनी  का  जरिया  भी  बनता  हें।

कुछ  समय  बाद पूर्व  स्थित्त  फिर  हों  जाती  है। इसका  स्थायी हल  खोजा  जाणा  चाहिये। इसके  लिए  हमे  अपने  अन्दर झाँकना  होगा।  हम  जाम  में प्राय : फसते  है। कीमती  डीज़ल ,पैट्रोल ,सी ० न ० जी ० व्यर्थ  खर्च  होती  है। प्रदूषण  भी  फैलता  है। क्या  हमने  कभी  सोचा कि अन्य  कारणों  के  साथ  जनता  भी उत्तरदायी है।

सड़को  के  हाल  देखिये।  सड़के  कही  की भी  हो  इनके  किनारें  के व्यवसायी  सड़क  पर क़ब्जा  करना  अपना  जन्म -सिद्ध  अधिकार  समझते  है। पहले  सड़कें  कम  चौड़ी  थीं। जन-सख्या  का  दबाब  बढ़ा  तो सड़कें  चौड़ी  की गयी। हरे -भरे  पेड़ों  को  काटा  गये।  उनकी   बलि  चढ़ा  दी गयी  जो हमे ऑक्सीजन  व धऱती को  जल  प्रदान  करते  थे। मगर  हालात  वहीं  के वही  रहें। सड़कें  चौड़ी  की गयी ,कब्ज़े बढ़ते गये। अतिक्रमण  हटाने वाला  दस्ता  रस्म  अदायगी  को  आता है ,कुछ -कुछ  तोड़ -फोड़  होती है।  कुछ  दिनों  में  वहीं  स्थति  फ़िर  हो जाती  है। कुछ  लोग  अपनी जेबें  गर्म  करते हें।  हम पुन :  जाम  में  फ़से  पसीना  बहते   रह  जाते है। ऐसा  इस  लिए  होता  है क्योकि  इसमें  जनता स्वय  भी  हिस्सेदार है।

हमे  इस   आदत  को बदलना  होगा।  हमे  स्वय  निर्णय  लेना  होगा  कि  हम नियम  विरूद्ध  न  तो  कोई  काम  करेंगे  न ही  होने  देगे।  पहले  हमे  ही  सुधरना  होगाः। 

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