Friday, July 25, 2014

एक पत्थर से बिगड़ा अमन -चैन

                             एक  पत्थर  से  बिगड़ा  अमन -चैन
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लोक तंत्र  में  अपनी  आवाज़  बुलन्द  करने  का  अधिकार  हर  नागरिक  व  समुदाय  को  है। गलत नीतियों  व  कार्यो  का  विरोध  करना  हमारा  दायित्व  भी है दिनांक २५ जुलाई २०१४  को लखनऊ में  जो कुछ  भी  हुआ  वह लोक त त्र  के लिए  अच्छा  नही  हुआ।

शिया धर्म गुरु मौलाना  कल्बे  जवाद  का  आरोप  है  कि   शिया वक्फ  बोर्ड  के चुनाव  की वोटर लिस्ट  में  काफी धाँधली  की गई। उनके  समर्थको  के  नाम  काट  दिये  गए। चुनाव प्रमुख  की नियुक्ति  में भी एक  राय नही  थी। वक्फ  की जमीन पर कब्जों  के मामलों  में  जिनके नाम रिपोर्ट है  उनकी गिरफ्तारी  की जानी  चाहिए।  


मांगे  चाहे  जितनी  भी जायज़  हो जिस  तरीके  का प्रयोग किया गया  है  वह एक स्वस्थ  लोक शाही  के लिये  कलंक है। इस तरह  के प्रदर्शनों  में  अासमाजिक त त्व  सक्रीय  हो  जाते  है। मूल प्रश्न तो पीछे रह   है  हम  अन्य  मामलों  में उलझ  जाते  है। उपद्रवी  लोगो  ने  मोटर -साईकिल  व पी ० ए ० सी ० की बस  जला दी गई। वाहनों  को पलटा  गया।  जरा  सोचिये  हमने  किसका-तफ़री नुकसान  किया ? उत्तर  साफ़  है कि  हमने  अपना  ही धन  नाश  किया  क्योकि  सरकारी सम्पति ,जनता दवरा  दिए  कर  से  ही  खरीदी  जाती  है। पुलिस  पिटाई ,हथियार छीन  लेना  यह  सब  अपराध के  दायरे  में  आता  है इस  तरह  की घटनाये  प्रायi हर प्रदर्शन  में  देखने  को मिलती  है। इसके लिए  सरकार  और  प्रशासन  भी  दोषी  है  जबतक  िस्थत  उग्र  नही  हो  जाती ,शासन के  कानो में  आवाज पहुँचती  ही  नही  है।

एक ओर  जापान  का उदाहरण  है ,लोग बाह  में काली  पट्टी  बांध  कर  विरोध  प्रदर्शन  करते  है तो  शासन ध्यान देकर समस्या का  निराकरण करने का  सार्थक प्रयास  करते  है।  हमारे यहाँ  भी अहिंसक , शान्त व्यवस्था  होनी  चाहिये  ताकि लोग  दहशत , जाम  अफ़रा -तफ़री  व  चोटिल  होने  से  बच  सके 

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