प्यासी धरती रूठे मेघा
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आसाढ़ तो चुपके -चुपके सूखा -सूखा बिता
है सावन की घटा छाती।
इक -इक हल्की सी फ़ुहार आती है ,
है तपते बदन को सहला जाती।
बदन अपना तन्दूर सा भभक उठता
है बूद छिन्न से उड़ जाती
जब तलक झूम के न बरसे बरखा ,
धरती प्यासी की प्यासी रह जाती //
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आसाढ़ तो चुपके -चुपके सूखा -सूखा बिता
है सावन की घटा छाती।
इक -इक हल्की सी फ़ुहार आती है ,
है तपते बदन को सहला जाती।
बदन अपना तन्दूर सा भभक उठता
है बूद छिन्न से उड़ जाती
जब तलक झूम के न बरसे बरखा ,
धरती प्यासी की प्यासी रह जाती //
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