" बुलेट ट्रेन किसके लिये "
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यह सत्य है कि नई तकनीकी का प्रयोग हमे विकासः शील राष्ट्र के ख़ाने से निकाल कर विकसित देशों के बराबर खड़ा होने में सहायक हो सकता है। क्या बुलेट ट्रेन इस लिये कि वह जापान व चींन
आदि देशो के यहाँ है ? उच्च -कलाश मे सुविधाए , विमान जैसी की जाये अच्छी बात है।
अब यहाँ यह सोचना आवश्यक हो जाता है कि उक्त सुविधा का लाभ कौन वर्ग उठायेगा। देश में वह कितने प्रित शत हें। निश्चय ही उक्त सुविधा ओ का उपभोग धनीवर्ग तथा उच्च माध्य्म वर्ग ही उठा पाएँगे। हमारे यहाँ रेलवे -स्टेशनों में मूल भूति सुविधाओं का अभाव है। हमने लम्बी -लम्बी ट्रेने तो डब्बे
जोड़ कर बना ली परन्तु उसके सामणे प्लेटफार्म का शेड सकुचित् हो गये। यात्रियों को वर्षा -काल में भीगते हुये ,ग्रीष्म -काल में अपने पसीने से तरबतर ,रवि की प्रखर किरणों रूपी बाड़ों को सहना पडता हें। शीत -काल में तीख़ी ठ ड़ी हवाओं से यात्री गण आहत होते हें। डब्बो में प्रकाश व पानी त था सफाईं की लचर व्यवस्था से जन -मानस प्राया व्यथ्तित होतां हें। रेलों में आये दिन लूट -पाट,आराजकता का
नंगा -नाच से यात्रिओ को दो -चार होना पड़ता है। अकेली महिला का सफ़र कितना सूरिच्छित रह्ता हें इसकी बानगी हमै प्रायi समाचार -पत्रों से प्राप्त होती रहती है।
इन मौलिक सुविधाओं को जन -सामान्य तक पहुँचाने में यदि सरकार सफल रहतीं है । सुशासन वा
अच्छे दिनों की परिकल्पना तभी साकार होगी।
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यह सत्य है कि नई तकनीकी का प्रयोग हमे विकासः शील राष्ट्र के ख़ाने से निकाल कर विकसित देशों के बराबर खड़ा होने में सहायक हो सकता है। क्या बुलेट ट्रेन इस लिये कि वह जापान व चींन
आदि देशो के यहाँ है ? उच्च -कलाश मे सुविधाए , विमान जैसी की जाये अच्छी बात है।
अब यहाँ यह सोचना आवश्यक हो जाता है कि उक्त सुविधा का लाभ कौन वर्ग उठायेगा। देश में वह कितने प्रित शत हें। निश्चय ही उक्त सुविधा ओ का उपभोग धनीवर्ग तथा उच्च माध्य्म वर्ग ही उठा पाएँगे। हमारे यहाँ रेलवे -स्टेशनों में मूल भूति सुविधाओं का अभाव है। हमने लम्बी -लम्बी ट्रेने तो डब्बे
जोड़ कर बना ली परन्तु उसके सामणे प्लेटफार्म का शेड सकुचित् हो गये। यात्रियों को वर्षा -काल में भीगते हुये ,ग्रीष्म -काल में अपने पसीने से तरबतर ,रवि की प्रखर किरणों रूपी बाड़ों को सहना पडता हें। शीत -काल में तीख़ी ठ ड़ी हवाओं से यात्री गण आहत होते हें। डब्बो में प्रकाश व पानी त था सफाईं की लचर व्यवस्था से जन -मानस प्राया व्यथ्तित होतां हें। रेलों में आये दिन लूट -पाट,आराजकता का
नंगा -नाच से यात्रिओ को दो -चार होना पड़ता है। अकेली महिला का सफ़र कितना सूरिच्छित रह्ता हें इसकी बानगी हमै प्रायi समाचार -पत्रों से प्राप्त होती रहती है।
इन मौलिक सुविधाओं को जन -सामान्य तक पहुँचाने में यदि सरकार सफल रहतीं है । सुशासन वा
अच्छे दिनों की परिकल्पना तभी साकार होगी।
सबसे निचले स्तर पर जीवन जीने को मजबूर को जिस दिन दो जून भरपेट भोजन मिले तभी अच्छे दिन देश के होंगे वर्ना दुनिया को दिखाने के लिए बहुतेरे उपक्रम हैं करने को .........
ReplyDeleteविचारणीय प्रस्तुति .....