Saturday, August 16, 2014

भारत के जन गण का अपमान

                                          भारत   के   जन  गण   का
                                                       अपमान
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          15 अगस्त 2014 को  भारत के 68 वे स्वतंत्रता -दिवस पर ऐतिहासिक लाल -क़िले पर राष्ट्रीय  समारोह के लिये दिल्ली में अभूतपूर्व सुरझा इन्तजाम किये गये थे। दूसरी तरफ़ प्रधान -सेवक मननीय प्रधानमन्त्री मोदी जी ने किसी तरह की बुलेट प्रूफ ढाल  के बिना पूरे विश्वास के साथ सार गर्भति सम्बोधन किया। कहने का अर्थ यह है कि उन्हें गोली का डर नही था।
           
            पंजाब -केसरी -दिल्ली में प्रकाशित समाचार से ज्ञात हुआ कि पता नही किसके निर्देश के अन्तर्गत मुस्तैद सुरझा कर्मियों ने प्रधान -सेवक का सम्बोधन को सुनने के लिये लाल-किले की ओर जाने वाली जनता की काली बनियाने  व काली जुराबो  को उतरवा लिया। जिससे की भारत के जन -गण  को भारी परेशानी व अपमान सहना  पड़ा।

               यह कैसा  लोक तन्त्र है ? जहाँ मालिक की बनियाने ,जुराबें  सरे -आम उतरवा लिए जाये। वह भी प्रधान -सेवक के  सामने। शायद सुरझा कर्मियों  को यह अन्देशा हो कि कोई व्यक्ति विरोध प्रकट करने के लिये झण्डे के रूप में उसका दुरूपयोग  न करने लगे। हम यह कहना चाहते है कि वर्षा -काल में यदि आकाश में काले -काले बादलों का आगमन हो जाता तो क्या सुरझा कर्मी उन्हें रोक लेते। कोई मुस्लिम नारी काले बुरक़े में आती या सिंख सम्प्रदाय   के किसी नागरिक ने काली पगड़ी पहन रखी होती तो क्या वह इसे भी उतरवा लेते। हमारी समझ में नही आ रहा हे कि काली बनियाने व जुराबें इतनी ख़तरनाक हथियार बन सकती है जिससे सुरझा को ख़तरा पैदा हो जाता।

             

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