Friday, September 19, 2014

* व्यन्दावन में विधवाओ का प्रवास * =================================

                                   *   व्यन्दावन  में   विधवाओ  का प्रवास *
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मथुरा की सांसद श्रीमती हेमा मालनी  के बयान को  गलत ढ़ग से परिभाषित किया जा रहा है। भारतीय पुरातन
संस्कृति की यह एक विषम  कुरीति है कि विधवाओं का सुबह दर्शन शुभ नहीं माना जातारहा है। शुभ -काम में भी उनकी उपस्थित कुछ स्थलों पर  अच्छी।नही  मानी जाती है। विधवाओं की यह नियत तय की जाती है कि  वह शेष -जीवन केवल भक्ति -भजन  पूजा -पाट  में ही गुजार दे। पहरावे में भी सादगी,भोजन भी निर्मिष रुखा -सूखा।  न कोई आकांछा  जन्म ले। उमंग से रहित शोकाकुल  भाव,शेष जीवन कस्ट मय तरीके से  गुजारना है।

यह भी माना गया है कि पूर्व जन्म के  कर्मो के कारण इन्हे इस जन्म में विधवापन का श्राप मिला है। इसी धारणा के फलस्वरूप देश के विभिन्न प्रान्तों, विशेष कर बंगाल की विधवाओ को उनके परिवार के लोग प्राया मथुरा -व्यन्दावनमें निसहाय छोड़ जाते है। जो यहाँ मन्दिरो  में भजन -कीर्तन की मजदूरी करती है। जिसके लिए उन्हें अन्न प्रदान किया जाता है यदाकदा नौजवान विधवाओ का हर तरीके से शोषण भी होता चलता है।

उनकी संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जाती है ऐसे  में  अवव्यस्था भी होती  है। हमें यह प्रयास करना चाहिए कि यह कुप्रथा रोकी जाये। विधवाओ के पारिवारिक जन उन्हें सम्मान सहित घरों में आस्रय दे।

कांग्रेस विधान -मण्डल दल के नेता प्रदीप माथुर ने केवल विरोध करने के लिए विरोध करते हुए कहा कि मथुरा की सांसद के बयान से धार्मिक भावनाओ  को चोट पहुचती है। यह कैसा धर्म है घर की माँ -बहिनो को असहाय
मथुरा या किसी धार्मिक नगरी में छोड़ दिया जाये और उसके हिस्से की धन -सम्पत्ति को हड़प लिया जाये। वह शापित नारी  भीख मांग  कर जिन्दगी  बसर करे और शोषण का शिकार बने। उन्हें समाज में समुचित सम्मान
व् पारिवारिक सुरझा मिलनी चाहिये। हम सबको इस तरह की कुरीतियों का जम कर विरोध करना चाहिए  नारी को  उचित स्थान मिलना चाहिये। 

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