Monday, July 27, 2015

नौजवानो, अगर तुम्हारे नशो में ताजा खून है तो भगत सिंह को याद करो जिसने हमको आजाद कराने के लिए अपनी जान कुर्वान कर दी, हम पर जिल्लत है कि गुलामी के कानून बनाए जा रहे है और हमारा खून गर्म भी नहीं हो रहा है ऩ
देश के मेहनतकशो अब तो उठ जाओ, तुम और तुम्हारे बच्चे गुलामी में धकेल दिए गए हैं ऩ इस झूठी राष्ट्र वादी भाजपा सरकार ने ऩ
व्यापम घोटाले के हंगामे के बीच शिवराज ने 22 जुलाई ध्वनि मत से
पारित किया मजदूरों, कर्मचारियों 
की संपूर्ण गुलामी का दस्तावेज़
मेरा उन नौजवानो से सवाल है जो
भाजपा के लिए काम करते है क्या
तुम गुलाम बनने के लिए भाजपा
का साथ दे रहे हो ऩ
माणिक सरकार ! त्रिपुरा में मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी द्वारा मुख्य मंत्री बनाए गये, दो साल पहले हुए चुनाव में 60 विधानसभा सीटों में 50 पर मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी सफल रही.करीब तीसरी या चौथी बार लगातार ये मुख्य मंत्री हुए हैं, बहुत सी उनमें विशेषताएँ हैं, जो लोगों को मालूम हैं, लेकिन आज के युग में भारत जैसे देश में जहाँ दुनिया भर की समस्याएँ मुँह बाए खड़ी हैं, और सरकारें आम तौर से अधिक दिन टिक नही पातीं, ऐसे में त्रिपुरा में करीब 35 साल से वामपंथी सरकार शासन कर रही है, ये बात समझने की है. विकास के मामले में भी तिरपुरा भारत के कई राज्यों से काफ़ी आगे है. शांति और सांप्रदायिक सौहार्द के मामले में भी उसकी पहली पोज़िशन है. आज तक भ्रष्टाचार का एक भी उदाहरण सामने नही आया, देश में वही संविधान है, जिसके तहत सभी राज्यों की सरकारें काम कर रहीं हैं, जबकि बहुत सारी सरकारों पर एक नही सैकड़ों भ्रष्टाचार के मामले टीवी और अख़बारों के मध्यम से सुनने को मिलते हैं. लेकिन क्या वजह है की तिरपुरा जैसे राज्य में इतने समय तक शासन चलने के बाद भी भ्रष्टाचार का एक भी मामला सामने नही आया. सरकारों और सरकारी लोगों के खिलाफ जनता का असंतोष देश के बाकी हिस्सों में बहुत अधिक देखा जा रहा है, वैसा असंतोष आज तक त्रिपुरा में सुनने को नही मिला. ये सब वैचारिक आधार पर संगठित और व्यवस्थित लोगों के काम से, और ईमानदारी से संभव हो सका है. वरना एक बॉर्डर एरिया जो बंगला देश से लगा हुआ है, वहाँ कितनी शांति और सांप्रदायिक सौहार्द की भावना देखी जा रही है, वो कमाल की बात है. देश में दूसरे भी बॉर्डर एरिया हैं,लेकिन धर्म और दूसरे नाम से वहाँ कितने झगड़े और नफ़रत के वातावरण देखने को मिलते हैं. वो आप सभी को मालूम है. लेकिन एक बॉर्डर ये भी है, हिंदू मुस्लिम जैसे प्रश्न यहाँ नही उठ रहे हैं, ऐसा क्यों है? वो लोग भी तो इसी देश और इसी देश में चल रहे संविधान और क़ानून से जुड़े हुए हैं. वहाँ भी हर जाती धर्म के लोग हैं. तो ये बात साफ समझ में आ रही है की सरकार की जनता के साथ अगर डीलिंग या व्यवहार सही है, जनता के प्रति सरकार ज़िम्मेदार है, तो फिर जनता भी सुखी होगी, तिरपुरा में ऐसा ही है. सरकार और पार्टी के लोग ज़िम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं. इस लिए वो देश के दूसरे राज्यों की अपेक्षा सुखी प्रांत है. दूसरे विकसित राज्य जैसे गुजरात और महाराष्ट या दूसरे राज्यों की तरह पूजिपतियों का भारी इनवेस्टमेंट भी वहाँ नही हुआ है, आर्थिक रूप से बडे घरानो का कोई विशेष सहयोग भी नही रहा. लेकिन फिर भी त्रिपुरा विकास कर रहा है,और देश के दूसरे राज्यों जैसे गुजरात से भी आगे है,शिक्षा में देश का पहला साक्षरता में स्थान है, आज हर मैदान में दूसरे राज्यों की अपेक्षा बेहतर पोज़िशन में है, ऐसा क्यों है? हम चाहेंगे की हमारे देश के नवजवान और समझदार लोग इस बात को ज़रूर समझे, और ऐसे ही विचारधारा के लोगों को शासन और सरकार बनाने के लिए आगे ले आने में सहयोग करें

Saturday, July 25, 2015

मे  मन की  बात
                     अभी  हम निद्रादेवी के बाहुपाश से पूरी तरह मुक्त भी  न  हो पाया थे \प्राची दिशा में आदित्य देव अपनी यात्रा का शुभारम्भ करने की तैयारी कर ही रहे थे की एक कर्ण –प्रिय आवाज हमारे कानो में गुजी “कहते  है  सब वेद पुराण,बिन पेड़ो के नहीं  कल्याण /अभी आखे पूरी तरह  से खुली  भी  न थी कि एक और  स्वर उभरा “ धूल-धुआ और  बढ़ता  शोर,धरती चली  विनाश की ओर/ फिर सिसकती हुई आवाज आयी” सारी धरती  करे पुकार,पयार्वरण  में  करो  सुधार |”

                       आज” विश्व पर्यावरण दिवस “ है /पर्यावरण झरन  व् विनाश  पर चिंता  व् चिन्तन  करने  का दिवस / लाखो सरकारी  व् गैर सरकारी  कार्यक्रम  किये जायेगे / हमे पर्यावरण सुरझा की बात एक ही दिन नहीं प्रतिदिन  करनी चाहिए / पर्यावरण बिगड़ने का प्रमुख कारण है दिन प्रतिदिन बढती हुई  जन सख्या अनुमान है की सन २०५० तक विश्व  की जन सख्या ९.६ अरब हो  जाएगी / जन बढ़ोतरी का मतलब है, वनों का सिकुड़ना/ वनों  का सिकुड़ना मतलब पर्यावरण  का विनाश | हमे इस  चक्र को  रोकना होगा / वनीकरण के लिए धरती को  बचना होगा /जन –भीड़ को कम करना होगा / तभी धरती  सुरछित रह पायेगी | हम अपनी रोजाना  की दिनचर्या में छोटे –छोटे बदलाव  लाकर  पर्यावरण  सुरझा  में महती योगदान  प्रदान  कर सकते  है / हम अपनी धरती को  हरी –भरी बना सकते है | आने  वाली  पीढ़ी  को  जीवन –लायक  धरती  उपलब्ध कर सकते है “|----------------------------------दिनेश 
“योग  तन –मन  को स्वस्थ  रखने की एक  वैझानिक  विधा  है \ योग  किसी  धर्म  से  नहीं  जुड़ा है \यह एक  जीवन जीने  का  तरीका  है \ सूर्य – नमस्कार  एक आसन  है \ इस आसन  में  शरीर के विभिन्न अंगो  के लाभकारी  योग मुद्राये शामिल  है \ तो  फिर क्यों  विरोध \कैसा  विरोध \ नमाज अदा करते  समय में  भी जब विभिन्न  आसनों का प्रयोग  करते है \ तो खुदा  की इबादत  के साथ व्यायाम भी  होता  है \ हम सभी  को सभी धर्मो की भावनाओ  का आदर करना चाहिए \हमे दुराग्रह कर किसी अच्छी  बात  का  विरोध  नहीं करना  चाहिए \ न  किसी  का  अनुचित  विरोध  सहन करना  चाहिए |”--------------------------------------------दिनेश 
मेरे  मन की बात

                           आज संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा  घोषित “अन्तरराष्ट्रीय योग –दिवस “है \उत्तरी गोलार्ध  में सबसे बड़ा दिन \ग्रीष्म –काल व वर्षा-काल का संयुक्त काल \ योग कोई  नवीं विधा नहीं है \आज से पांच हजार वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई विधा  की समूचे विश्व में मान्यता प्राप्त हुई \अति  भोतिक वादी सुखो से त्रस्त मानव को अध्यात्मिक शान्ति प्रदान  करने में पुरातन विधा  योग का महत्वपूर्ण  स्थान है \ सूर्य  की किरने  सामान रूप  से  सभी जीवो को ऊष्मा  व्  प्रकाश प्रदान करती है \जीवन की उत्पत्ति  में रवि का महत्वपूर्ण योगदान है \ फिर सूर्य की वन्दना करने में कैसा विवाद,सूर्य –नमस्कार मेरे  मन की बात
                           आज संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा  घोषित “अन्तरराष्ट्रीय योग –दिवस “है \उत्तरी गोलार्ध  में सबसे बड़ा दिन \ग्रीष्म –काल व वर्षा-काल का संयुक्त काल \ योग कोई  नवीं विधा नहीं है \आज से पांच हजार वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई विधा  की समूचे विश्व में मान्यता प्राप्त हुई \अति  भोतिक वादी सुखो से त्रस्त मानव को अध्यात्मिक शान्ति प्रदान  करने में पुरातन विधा  योग का महत्वपूर्ण  स्थान है \ सूर्य  की किरने  सामान रूप  से  सभी जीवो को ऊष्मा  व्  प्रकाश प्रदान करती है \जीवन की उत्पत्ति  में रवि का महत्वपूर्ण योगदान है \ फिर सूर्य की वन्दना करने में कैसा विवाद,सूर्य –नमस्कार स्वय में योगिक क्रिया  है |”--------------------------------दिनस्वय में योगिक क्रिया  है |”--------------------------------दिन

Friday, July 24, 2015

“मन तो मेरा भी करता है झूमूँ , नाचूँ, गाऊँ मैं
आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं
लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं
मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण कहाँ से लाऊँ मैं
मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठी हूँ
आजादी के टूटे-फूटे सपने लेकर बैठी हूँ
घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं
उन लोगों को z सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं
जो भारत को बरबादी की हद तक लाने वाले हैं
वे ही स्वर्ण-जयंती का पैगाम सुनाने वाले हैं
आज़ादी लाने वालों का तिरस्कार तड़पाता है
बलिदानी-गाथा पर थूका, बार-बार तड़पाता है
क्रांतिकारियों की बलि वेदी जिससे गौरव पाती है
आज़ादी में उस शेखर को भी गाली दी जाती है
राजमहल के अन्दर ऐरे- गैरे तनकर बैठे हैं
बुद्धिमान सब गाँधी जी के बन्दर बनकर बैठे हैं
इसीलिए मैं अभिनंदन के गीत नहीं गा सकती हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकती हूँ | |
इससे बढ़कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी
आजादी के परवानों पर घात नहीं हो सकती थी
कोई बलिदानी शेखर को आतंकी कह जाता है
पत्थर पर से नाम हटाकर कुर्सी पर रह जाता है
गाली की भी कोई सीमा है कोईमर्यादा है
ये घटना तो देश-द्रोह की परिभाषा से ज्यादा है
सारे वतन-पुरोधा चुप हैं कोई कहीं नहीं बोला
लेकिन कोई ये ना समझे कोई खून नहीं खौला
मेरी आँखों में पानी है सीने में चिंगारी है
राजनीति ने कुर्बानी के दिल पर ठोकर मारी है
सुनकर बलिदानी बेटों का धीरज डोल गया होगा
मंगल पांडे फिर शोणित की भाषा बोल गया होगा
सुनकर हिंद – महासागर की लहरें तड़प गई होंगी
शायद बिस्मिल की गजलों की बहरें तड़प गई होंगी
नीलगगन में कोई पुच्छल तारा टूट गया होगा
अशफाकउल्ला की आँखों में लावा फूट गया होगा
मातृभूमि पर मिटने वाला टोला भी रोया होगा
इन्कलाब का गीत बसंती चोला भी रोया होगा
चुपके-चुपके रोया होगा संगम-तीरथ का पानी
आँसू-आँसू रोयी होगी धरती की चूनर धानी
एक समंदर रोयी होगी भगतसिंह की कुर्बानी
क्या ये ही सुनने की खातिर फाँसी झूले सेनानी ???
जहाँ मरे आजाद पार्क के पत्ते खड़क गये होंगे
कहीं स्वर्ग में शेखर जी केबाजू फड़क गये होंगे
शायद पल दो पल को उनकी निद्रा भाग गयी होगी
फिर पिस्तौल उठा लेने की इच्छा जाग गयी होगी
मैं सूरज की बेटी तम के गीत नहीं गा सकती हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकती हूँ | |
महायज्ञ का नायक गौरव भारत भू का है
जिसका भारत की जनता से रिश्ता आज लहू का है
जिसके जीवन के दर्शन ने हिम्मत को परिभाषा दी
जिसने पिस्टल की गोली से इन्कलाब को भाषा दी
जिसकी यशगाथा भारत के घर-घर में नभचुम्बी है
जिसकी थोड़ी सी आयु भी कई युगों से लम्बी है
जिसके कारण त्याग अलौकिक माता के आँगन में था
जो इकलौता बेटा होकर आजादी के रण में था
जिसको ख़ूनी मेहंदी से भी देह रचना आता था
आजादी का योद्धा केवल चना-चबेना खाता था
अब तो नेता सड़कें, पर्वत, शहरों को खा जाते हैं
पुल के शिलान्यास के बदले नहरों को खा जाते हैं
जब तक भारत की नदियों में कल-कल बहता पानी है
क्रांति ज्वाल के इतिहासोंमें शेखर अमर कहानी है
आजादी के कारण जो गोरों से कभी लड़ी है रे
शेखर की पिस्तौल किसी तीरथ से बहुत बड़ी है रे !
स्वर्ण जयंती वाला जो ये मंदिर खड़ा हुआ होगा
शेखर इसकी बुनियादों के नीचे गड़ा हुआ होगा
मैं साहित्य नहीं चोटों का चित्रण हूँ
आजादी के अवमूल्यन का वर्णन हूँ
मैं दर्पण हूँ दागी चेहरों को कैसे भा सकती हूँ
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकती हूँ
_____
जो सीने पर गोली खाने को आगे बढ़ जाते थे,
भारत माता की जय कह कर फ़ासीं पर जाते थे |
जिन बेटो ने धरती माता पर कुर्बानी दे डाली,
आजादी के हवन कुँड के लिये जवानी दे डाली !
वे देवो की लोकसभा के अँग बने बैठे होगे
वे सतरँगी इन्द्रधनुष के रँग बने बैठे होगे !ii
दूर गगन के तारे उनके नाम दिखाई देते है
उनके स्मारक चारो धाम दिखाई देते है !
जिनके कारण ये भारत आजाद दिखाई देता है
अमर तिरँगा उन बेटो की याद दिखाई देता है !
उनका नाम जुबा पर लो तो पलको को झपका लेना
उनको जब भी याद करो तो दो आँसू टपका लेना
उनको जब भी याद करो तो दो आँसू टपका लेना….

Thursday, July 23, 2015

नफस-नफस, कदम-कदम, बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

जहाँ अवाम के खिलाफ साजिशें हों शान से
जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
जहाँ पे लफ्जे-अमन एक खौफनाक राज़ हो
जहाँ कबूतरों का सरपरस्त एक बाज हो
वहां न चुप रहेंगे हम, कहेंगे हाँ, कहेंगे हम!
हमारा हक, हमारा हक, हमें जनाब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

यकीन आँख मूँद कर किया था जिनको जान कर
वही हमारी राह में खड़े हैं सीना तान कर
उन्ही की सरहदों में कैद हैं हमारी बोलियाँ
वही हमारी थाल में परस रहे हैं गोलियाँ
जो इनका भेद खोल दे! हर एक बात बोल दे!
हमारे हाथ में वही खुली किताब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

वतन के नाम पर ख़ुशी से जो हुए हैं बे-वतन
उन्ही की आह बे-असर, उन्ही की लाश बे-कफ़न
लहू-पसीना बेचकर जो पेट तक न भर सकें
करें तो क्या करें भला न जी सकें न मर सकें
सियाह जिंदगी के नाम, उनकी हर सुबह-ओं-शाम
उनके आसमां को सुर्ख आफताब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

होशियार! कह रहा लहू के रंग का निशाँ
ऐ किसान होशियार! होशियार नौजवान
होशियार! दुश्मनों कि दाल अब गले नहीं
सफेदपोश रहजनो कि चाल अब चले नहीं
जो इनका सर मरोड़ दे, गरूर इनका तोड़ दे
वह सरफ़रोश आरज़ू वही शबाब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

तस्सल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर
निगाह डाल, सोच और सोच कर सवाल कर
किधर गए वो वायदे? सुखों के ख्वाब क्या हुए?
तुझे था जिनका इंतज़ार वो जवाब क्या हुए?
तू इनकी झूठी बात पर, न और ऐतबार कर
कि तुझको सांस-सांस का सही जवाब चाहिए!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए!
जवाब दर सवाल है कि इन्कलाब चाहिए!
      इन्कलाब जिंदाबाद! जिंदाबाद इन्कलाब!

Thursday, July 16, 2015

हमारे विचार \ मेरे  मन  की बात

     “ हर  कठनाईयो के  पत्थरों को बनाकर  सीढ़िया अपनी, जो मंजिल पर  पहुँच  जाए उसे सफल इन्सान कहते है \ जिन्दगी में ऐसा कोन है जो सफल  नहीं होना चाहता है \ हर व्यक्ति चाहता है कि सफलता  उसके  कदम चूमे \ सफलता के लिए जरूरी है किलझय के अनुरूप प्रयास \ जितना बड़ा व् ऊचा लझय होगा उतना ही अधिक प्रयास और साधन  होना चाहिए \ इस मध्य समस्याए, मुश्किले  भी आएगी \ समस्यायों से संघर्ष \समस्या रूपी चुनेतियो का वीरता पूर्वक सामना  करना होगा \ उन्हें सुलझाने में जीवन का अपना अर्थ छिपा है \ समस्याए  हमरी बुध्द्मित्ता  को ललकारती है \ जो बाते हमे कष्ट पहुचती है वे बाते  हमे कुछ –न कुछ सिखाती जरुर है \ समस्यायों  को आगे बढ़ कर गले लगाने वाला,उन्हें अपना हथियार बनाने वाला ही जिन्दगी  के समर  में विजयश्री प्राप्त  करता है |”------------------------------------------------------------------------------------------------------------दिनेश 
डोला,पात –पात  हिले \ गोधूली की बेला,रत –दिन मिले \ढलते  रवि की किरने, ऊष्मा रहित  स्वर्णमयी हो फैल रही है असीम आभा से युक्त प्रकाश, संध्या की अगवानी करता प्रतीत हो रहा है \समय चक्र अपनी गति से चलायमान है \साँझ बीती रजनी का आगमन सुनिशिचित हुआ \ दिन में हरी भरी वादियों,चाय बागानों के मध्य,जंगल का बीच बनी हमारी काटेज जितनी सुहानी, मनोरम प्रतीत होती है रात्रि घिरते ही घने अंधकार के साए में छिप गयी \झिगुर व एनी कीट पतंगो व बड़े मच्छरों के समूह गान से वातावरण विचित्र हो रहा था \रात्री की नीरवता में यह स्थान रहस्यमय लग रहा था \ मंयक अभी आकाश में आया नहीं था \ आसमान में छाये बादलो ने  तारा –मण्डल को ढक लिया था \ प्रकाश के अभाव में शयन स्थल पर जाने के अलावा एनी कोई मार्ग नहीं था \ रात्रि को बाहर आने के लिए विशेष साहस को बटोरना पड़ता था  क्योकि गाँव वालो ने जंगली जीव-जन्तुओ के आने की संभावना प्रकट की थी |

                 रैना बीती \चिडियों की चहचहाहट से नीद खुली \वातावरण में शीत का भाव \ प्राची दिशा में लालिमा धीरे –धीरे खिल रही थी \ कुमुदनी अपने पत्र दल पल –पल विकशित करती  जा रही थी \ बाल रवि की किरने हरी भरी बसुन्धरा का कोमल चुम्बन सा करती प्रतीत हो रही थी \ बुग्याल की हरितम घास पर बिखरी ओस की बूंदों से प्रत्यावर्तित प्रकाश ऐसा लग रहा था कि असंख्य मोती धरा पर बिखेर दिए गये हो \ कुछ ही पल बीते थे कि एकाएक एक व्रहद भूरे बादलो का आक्रमण वातावरण पर हो गया \ हर वस्तु अस्पष्ट सी दिखती, चारो ओर ठण्डी धुंध छा गयी \यकायक द्व्श्य परिवर्तन हो गया सम्पूर्ण  जगत एक रंग –मंच है \ हम अपना अपना  रोल निभा रहे है \ द्व्श्य आते है, चल –चित्र की तरह बदल जाते है \यह क्रम यूही चलता था,चल रहा है,चलता रहेगा |       

     =====         ====    “आह ! कोसानी, वाह ! कोसानी =================


गत दिनांक १५ मई२०१५  को हिमालय  की गोद में  बसी कोसानी  में वर्ष २०१४-२०१५  में तीसरी बार आगमन हुआ \ पूज्य राष्ट्र –पिता महात्मा  गाँधी के  अनुसार भारत का स्विट्जर लैंड  है कोसानी \ इतना स्वच्छ,मनोरम,स्वास्थवर्धक पर्यावरण अनायास ही मन को आकर्षित  करता है \ वर्ष १९२९ में पूज्य  बापू भी  मात्र दी दिन विश्राम हेतु कोसानी पधारे थे परन्तु यहाँ के रमणीय द्श्य व् वातावरण से प्रभावित हो चोदह दिनों का प्रवास किया था \यही अपनी पुस्तक “अनासक्ति योग “ गीता का भाष्य  पूरा  किया \कीं                        धूप-++++++++++++++++छाव
     दिनांक २४ जून २०१५ दिन बुधवार स्थान कोसानी जिला बागेश्वर उत्तराखण्ड\ गत कई दिनों से मोसम विभाग यह सूचना प्रसारित  कर रहा था कि कुछ झेत्रो में व्यापक वर्षा का अनुमान है \४८ घंटे से ६० घन्टे तक वर्ष निरन्तरजारी रह सकती है \मैदानी इलाके तो गर्मीके ताप से तप ही रहे थे उसकी आंच पहाडियों में भी महसूस की जा रही थी \ उच्च स्थानों में वायूमंडल प्रदूशित नही होता अत:सूर्य की किरने “अल्ट्रावालेट किरने “ तन को सीधे तीखी कटार सी चुभ रही थी \ मध्यरात्रि से मेघो ने मल्हार गाना प्रारम्भ कर दिया \बूंदों की टप-टपहट वर्षा संगीत का संयोजन कर रही थी \वर्षा अनवरत २५जुन आपात –काल की चालीसवी वर्षगाठ पर जम कर बरस रही थी \ मूसलाधार वर्ष,बादलो  की गडगडाहट और कडकन से धरती लरज-लरज उठती है \बादल ऐसे गरज रहे है मनो सर्वग्रास्नी काम झुधा किसी सन्त के अन्तर आलोक को निगलकर दम्भभरी डकार ले रही हो \ बोझारे पछतावे के तारो से सनसना रही है ------बीच----बीचमें बिजली भ वैसे चमक उठती जैसे कमी के मन में पल भर के लिए भक्ति चमक उठती है \ २५ की रात्रि व २६ की सुबह तक काले –काले मेघ अपने सम्पूर्ण अस्त्र –शस्त्र से महीको घायल करते रहे \ आपात काल की काली रात याद आती  रही \ प्रातःकाल भी  मेघ आकाश पर अपना घेरा डाले रहे \लगभग सात बजे भुवन –भाष्कर ने अपना प्रभाव दिखलाया \आपात काल की काली रात बीती\ लोकशाही के रवि  ने आकाश मार्ग पर अपना रथ आगे बढ़ाया \मोसम खुल गया \लोगो ने राहत की साँसे ली \ अजब है मानव जब वर्षा नहीं हो रही थी \गावो व शहरो में पेय जल का संकट गहराने लगता है \वन दावानल से सुलगने लगते है \मानव प्रयास इन्हें रोकने में सझम नहीं हो पाते \ मेघ बरसे,ज्वाला शांत हुई \ पर पानी के प्रहार से पहाड़ खिसके,रहे रुकी यहाँ तक चारो धाम की यात्रा भी विरामित की गयी \लोग घबराने लगे \क्या खे  न  इस पल चैन न उस पल चैन \प्रकति कर तो क्या करे \ हरी भरी वादियों में दूर ऊचे – ऊचे पर्वतों पर अभी भी बादलो ने घेरा  डाल रखा था \ युध्द –विराम से स्थित पर कभी कभी बोछारो की फायरिंग हो सकती है \
                   आदित्य की तीखी किरणों ने धरा की नमी को शेवत बादलो में बदल दिया था \व्योम में रुई के बड़े –बड़े फाये जैसे बादल टहल –टहल कर अपनी हाजरी दर्ज करा रहे थे \सूर्य नारायण धीरे –धीरे अस्ताचलगामी हो रहे थे \गंगन  रंगीन बादलो की चित्र –पट्टी बन गया था \ शांत समीर 
घेरत  नभ  मेघ  चहुँ   ओरा.
                         बरखा   होत भीषण   घनघोरा |
भीगत  मन   भीगत  तन  मोरा
                           हरषित हिय  नभ  और निहोरा |
डोलत  समीर, शीत  से तन कापा
                           रामहि  राम –राम   मन व्यापा |
देख   दशा   हमरी  प्रभू मुस्काने,

                             कब  पहुंचब  हम  प्रभू ठिकाने |”----------------दिनेश   
                         बढ़ी     उष्मा  तो    बन  जाते   बदल,
पल   में  शीत   लहराते    बदल |
                          व्योम   आच्छादित  कर  जाते   बादल ,
बरस  बरस  जाते  है   बादल |
                           पल  पल  रंग  बदलते     बादल ,
पल   भर    में  छआया  कर जाते बादल |
                            धूप  छाव  दिखलाते  बादल

रिम झिम  बरसे रुक रुक  बादल |-----------------------------------------------------------दिनेश 

Monday, July 13, 2015

"ग्रीष्म  कल  का है  अजब  हाल                                                   
नर –नारी,पशु –पझी   सब  बेहाल
जंगल  में जब  सुलगती  आग
पेड़   सभी  वह   करती  खाक
दावानल  का  बड़ता  है  प्रकोप

मनु  पर है  प्रकति  का प्रतिशोध "|---------------dinesh 


Friday, July 10, 2015

जाने का क्या गम होता है |
रह गयी कुछ भूली बिसरी यादे,
ध्वस्त  भवन  यही क्या कम है |
ज्यो –ज्यो समय गुजरता जाता है,
है  वह मरहम जख्म भर ही जाते है |
हर विनाश के  बाद,बिखरे मलवे में,
विकास  के अंकुर  फूट ही जाते है |

घोरतम तम हो तो क्या,
विकास के प्रकाश की किरन फैलेगी |
निराशा के काले मेघ तेरे तो क्या,
रवि  की ज्योति चहु ओर फैलेगी |”------------------------------------दिनेश 
उम्मीदे बीते बरस  दो,
ताण्डव शिव का केदार घाटी ने देखा |
प्रलय सम तीव्र प्रवाह,
जलधारा ने बोल्डरो को फेका |
इतिहास में बदल गया,
धरा के स्वरूप का भूगोल |
धरती धसी,पहाड़ खिसके,
सब कुछ  हुआ  डावाडोल |
जिन्दगी बिखरी,टूटे तिनके की तरह
मनुज  बेमोत मारा |
खिलोने की तरह टूटा
विकास का  ढाचा,हिल गयी धरा |
खील से खिल गए भवन
धाराशायी हो गए आश्रय  सभी |
बिछुड़ गये अनगिनित परिवारजन,
जो  न  मिले फिर   कभी |
टूट गये सुनहरे स्वपन,
गयी बिखर –बिखर |
हताशा और निराशा  सभी के
खड़े हो गये उच्चतम  शिखर |
लोगो ने जाना कि अपनों के
जाने का क्या गम होता है
मिला   न    कोई    ठोर
“गहन जंगलो  में आग से,
धुन्ध  छायी  चारों   ओर|
                     व्याकुल  नर –नारी  पशु –पझी.
                      संकट  छाया  घोर |
भागते है सभी  प्राणी ग्रीष्म  मे,
छाया  पाने  की   ओर|
                       सुलगती  है  चहु ओर  धरा
                        मिला  न  कोई ठोर |”------------------------दिनेश
आज दिनांक ९ जून २०१५ दिन मंगलवार \ आषाढ़ मा
आज दिनांक ७ जून २०१५ दिन रविवार / आषाढ़ मास क्रष्ण  पंचमी सावंत कीलक२०७२
आज का  विचार \ मेरे मन की बात
                            प्राची  दिशा  में शिशु आदित्य की कोमल सुनहरी केशरिया रशिम नयनों को शीतलता  प्रदान करती है / जैसे –जैसे रवि  नभ  में उपर उठता  जाता  है,किरने प्रखर से
प्रखरतम होती जाती है /चमक की तेजी और  ऊष्मा  में बढ़ोतरी होती जाती  है /ठीक उसी तरह मानव मन जन्म से  कोमल  होता  है /योवन  प्राप्त  करते –करते तीखा होता जाता है /भुवन भाष्कर सम्पूर्ण दिवस  की यात्रा पूरी  कर  संध्या को पुन; नर्म  लालिमा युक्त हो  नयनोँ को  भाने लगते  है /मानव स्वभाव  भी जीवन की अन्तिम बेला  में  बाल्य-पन  के समान कोमल व्  विनम्रता से भर  जाता है /आनदोद्धि में आकंठ डूब जाता है |”----------------------------------------------दिनेश
                       ॐ      शान्ति           शान्ति           शान्ति
                                        जय     हो      हिंदुस्तान   की
                  =========================
आओ  बच्चो तुम्हे  भी दिखाए,झाकी है हिंदुस्तान  की
सब मिल बोलो सच्चे बच्चो,जय हो हिंदुस्तान  की
भिन्न –भिन्न तरह की भाषाए बोली,जय  हो हिंदुस्तान की
विभिन्न सभी धर्मो में ही जाये एका,जय हो हिंदुस्तान  की 

गोरे-काले , पीत वर्ण के फूल खिले, जय हिंदुस्तान की 
हे  प्रभु ! कैसी है,तेरी  लीला,अजब है तेरी माया
कभी तेज धूप  खिलती  है, कभी आती  है छाया
हम तेरे शुक्रगुजार  है, सो  बार  हे  जगत पिता
हमारे सर पर है,तेरे वरद   हस्त     का साया
कभी तेज धूप  खिलती  है, कभी आती  है छाया
हम तेरे शुक्रगुजार  है, सो  बार  हे  जगत पिता
हमारे सर पर है,तेरे वरद   हस्त     का साया
माया  तो  ठगनी है,इसको  न  को समझ पाया 
कभी – कभी  आतंक कपि कुल  का
मनुज को कुछ ज्यादा ही सताता है |
पूर्वज मनुज  के कपि,मनुज की ही तरह
धीरे से द्वार मनुज के  थपथपाते  है |
खुला द्वार पा  कर चतुर चपलता से
खाद्य सामग्री,अपनी समझ उठा ले जाते है |
पालतू स्वान चोक्स हो कपि कुल  को

दोडते,धमकाते,भागते धमाचोकड़ी मचाते है |”-----------------दिनेश