घेरत नभ
मेघ चहुँ ओरा.
बरखा होत भीषण
घनघोरा |
भीगत मन
भीगत तन मोरा
हरषित हिय नभ और
निहोरा |
डोलत समीर, शीत
से तन कापा
रामहि राम –राम
मन व्यापा |
देख दशा
हमरी प्रभू मुस्काने,
कब पहुंचब
हम प्रभू ठिकाने
|”----------------दिनेश
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