जाने का क्या गम होता है |
रह गयी कुछ भूली बिसरी
यादे,
ध्वस्त भवन
यही क्या कम है |
ज्यो –ज्यो समय गुजरता जाता
है,
है वह मरहम जख्म भर ही जाते है |
हर विनाश के बाद,बिखरे मलवे में,
विकास के अंकुर
फूट ही जाते है |
घोरतम तम हो तो क्या,
विकास के प्रकाश की किरन
फैलेगी |
निराशा के काले मेघ तेरे तो
क्या,
रवि की ज्योति चहु ओर फैलेगी
|”------------------------------------दिनेश
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