Thursday, July 16, 2015

     =====         ====    “आह ! कोसानी, वाह ! कोसानी =================


गत दिनांक १५ मई२०१५  को हिमालय  की गोद में  बसी कोसानी  में वर्ष २०१४-२०१५  में तीसरी बार आगमन हुआ \ पूज्य राष्ट्र –पिता महात्मा  गाँधी के  अनुसार भारत का स्विट्जर लैंड  है कोसानी \ इतना स्वच्छ,मनोरम,स्वास्थवर्धक पर्यावरण अनायास ही मन को आकर्षित  करता है \ वर्ष १९२९ में पूज्य  बापू भी  मात्र दी दिन विश्राम हेतु कोसानी पधारे थे परन्तु यहाँ के रमणीय द्श्य व् वातावरण से प्रभावित हो चोदह दिनों का प्रवास किया था \यही अपनी पुस्तक “अनासक्ति योग “ गीता का भाष्य  पूरा  किया \कीं                        धूप-++++++++++++++++छाव
     दिनांक २४ जून २०१५ दिन बुधवार स्थान कोसानी जिला बागेश्वर उत्तराखण्ड\ गत कई दिनों से मोसम विभाग यह सूचना प्रसारित  कर रहा था कि कुछ झेत्रो में व्यापक वर्षा का अनुमान है \४८ घंटे से ६० घन्टे तक वर्ष निरन्तरजारी रह सकती है \मैदानी इलाके तो गर्मीके ताप से तप ही रहे थे उसकी आंच पहाडियों में भी महसूस की जा रही थी \ उच्च स्थानों में वायूमंडल प्रदूशित नही होता अत:सूर्य की किरने “अल्ट्रावालेट किरने “ तन को सीधे तीखी कटार सी चुभ रही थी \ मध्यरात्रि से मेघो ने मल्हार गाना प्रारम्भ कर दिया \बूंदों की टप-टपहट वर्षा संगीत का संयोजन कर रही थी \वर्षा अनवरत २५जुन आपात –काल की चालीसवी वर्षगाठ पर जम कर बरस रही थी \ मूसलाधार वर्ष,बादलो  की गडगडाहट और कडकन से धरती लरज-लरज उठती है \बादल ऐसे गरज रहे है मनो सर्वग्रास्नी काम झुधा किसी सन्त के अन्तर आलोक को निगलकर दम्भभरी डकार ले रही हो \ बोझारे पछतावे के तारो से सनसना रही है ------बीच----बीचमें बिजली भ वैसे चमक उठती जैसे कमी के मन में पल भर के लिए भक्ति चमक उठती है \ २५ की रात्रि व २६ की सुबह तक काले –काले मेघ अपने सम्पूर्ण अस्त्र –शस्त्र से महीको घायल करते रहे \ आपात काल की काली रात याद आती  रही \ प्रातःकाल भी  मेघ आकाश पर अपना घेरा डाले रहे \लगभग सात बजे भुवन –भाष्कर ने अपना प्रभाव दिखलाया \आपात काल की काली रात बीती\ लोकशाही के रवि  ने आकाश मार्ग पर अपना रथ आगे बढ़ाया \मोसम खुल गया \लोगो ने राहत की साँसे ली \ अजब है मानव जब वर्षा नहीं हो रही थी \गावो व शहरो में पेय जल का संकट गहराने लगता है \वन दावानल से सुलगने लगते है \मानव प्रयास इन्हें रोकने में सझम नहीं हो पाते \ मेघ बरसे,ज्वाला शांत हुई \ पर पानी के प्रहार से पहाड़ खिसके,रहे रुकी यहाँ तक चारो धाम की यात्रा भी विरामित की गयी \लोग घबराने लगे \क्या खे  न  इस पल चैन न उस पल चैन \प्रकति कर तो क्या करे \ हरी भरी वादियों में दूर ऊचे – ऊचे पर्वतों पर अभी भी बादलो ने घेरा  डाल रखा था \ युध्द –विराम से स्थित पर कभी कभी बोछारो की फायरिंग हो सकती है \
                   आदित्य की तीखी किरणों ने धरा की नमी को शेवत बादलो में बदल दिया था \व्योम में रुई के बड़े –बड़े फाये जैसे बादल टहल –टहल कर अपनी हाजरी दर्ज करा रहे थे \सूर्य नारायण धीरे –धीरे अस्ताचलगामी हो रहे थे \गंगन  रंगीन बादलो की चित्र –पट्टी बन गया था \ शांत समीर 

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